________________
२७८
मत्स्य प्रदेश को हिन्दी-साहित्य को देन
६३. भोलानाथ - १८, १०६ । महाराज कुमार नाहरसिंह के प्राश्रित ।
लीला पच्चीसी : प्रकृति-चित्रण पर सुन्दर छंदों सहित । ६४. मणिदेव - १८ । महाभारत के कुछ पर्यों का अनुवाद । ६५. मनीराम - ६८, ६६, २६४, २६५। बलभद्र के सिखनख पर प्रथम टीकाकार ।
सिखनख को टीका : संवत् १८४२। यह इस ग्रंथ की सर्वप्रथम हिंदी टीका है, जो अभी तक अज्ञात थी। ६६. मान - १०४ । शिददान के आश्रित ।
शिवदान चन्द्रिका : रीतिग्रंथ । अनेक स्थानों पर बरवै छंद का प्रयोग । शुद्ध संस्कृत-गभित भाषा। ६७. मुरलीधर - १६ । यह भट्ट थे। इनका उपनाम प्रेम था। राधाकुंड से आये
और अलवर में कविता की।
शृंगार तरंगिणी : समय १८५० ॥ ६८. मोतीराम - १८, ३५, ३८, ७४, ७८, २७० । संभवतः वृन्दावन के निवासी।
ब्रजेन्द्र-विनोद : समय १८८५ विक्रमी। रीति संबंधी अनेक विषयों का सुन्दर कविता में विवेचन ।
६६. रतनपाल - १००, २६४ । करौली महाराज । ७०. रस अानन्द - १५, १८, ३५, ३८, ६८, ७४, ८४, ८६, ६०, ६१, ११७, १५०, २४६, २५०, २५७, २६२, २६४, २७० । भरतपुर का प्रसिद्ध कवि ।
१. संग्राम रत्नाकर : ४७४ पत्रों का वृहद् ग्रंथ । २. रसानंदघन : २० पत्रों की अधरी पुस्तक। ३. सिखनख: संवत १८९३, विस्तत वर्णन. ४ गंगा भतल प्रागमन कथा : इसकी कई प्रतियां मिलीं। ५. ब्रजेन्द्र-विलास : संवत् १८६५, ७
विलासों सहित । ६. हितकल्पद्रुम : 'अनवार सुहेली' का व्रजभाषा-पद्यानुवाद । ७१. रसनायक - १३८ ।
विरह विलास : समय संवत् १७८२ । गोपियों के प्रसंग में सूर का अनुकरण । दोहा, कवित्त तथा सवैया छंद का प्रयोग । ७२. रसरासि - १४१ ।
___ रसरासि पचीसी, (उद्धव पचीसी) : राज्याज्ञानुसार लिखित । ७३. रामकृष्ण -१८ । दानलीला ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org