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अध्याय ८-उपसंहार
की ग्रावश्यकताओं के अनुसार अपनी मंथर गति से चलता रहा ।
खोज में प्राप्त ग्रन्थों की लिपि के संबंध में भी कुछ बातों का संकेत अप्रासंगिक न होगा
अ. इस प्रदेश में पाये गये हस्तलिखित ग्रन्थ इस बात का प्रमाण हैं कि हस्तलिखित प्रतियां बहुत सावधानी के साथ लिपिबद्ध की जाती थीं। काली स्याही बहुत चमकीली होती थी और कभी-कभी लाल स्याही तथा अन्य रंगोन स्याहियों का प्रयोग भी होता था । कागज या तो देसी होता था अथवा विलकोर्ट ग्रादि कंपनियों का बना विलायती। प्रतियों को सुरक्षित रखने की अोर काफ़ी ध्यान दिया जाता था और अच्छी जिल्द बंधी होती थी। सैकड़ों वर्षों के बाद आज भी कुछ प्रतियां अपने सुन्दर रूप में उपलब्ध हैं।
आ. यहां की हस्तलिखित प्रतियों में कुछ बातें समान रूप से देखी जाती हैं
१. आधुनिक 'ख' के लिए 'ष', २. 'घ्र' के लिए 'घ्र', ३. कभी कभी 'ॐ' के स्थान में 'उ', ४. 'ई' के स्थान में 'ही', ५. 'ए' के स्थान में 'अ', ६. विरामों में केवल पूर्ण विराम " । " मिलता है वह भी कहीं-कहीं
और लेखक की रूचि के अनुसार, ७. बीच के वर्ण छोड़ने की प्रणाली अ-सं-म-त्ना थ ग्रा र क
अथ 'संग्राम रत्नाकर' ८. तालव्य 'श' के स्थान में प्रायः दंत्य 'स', ६. इकारान्त और ईकारान्त तथा उकारान्त और ऊकारान्त का
मिश्रण। इ. मत्स्य-प्रदेश के अंतर्गत पाई गई हस्तलिखित प्रतियों में बहुत साम्य है-उनके लिखने को पद्धति, अक्षरों की बनावट लगभग एक प्रकार की हैं । नवीन प्रतियों में 'ख', 'ऐ' आदि रूप मिल जाते हैं ।
ई. कहीं-कहीं चित्रमय प्रणाली का भी प्रयोग हुया है। वर्णो का रूप चिड़ियों श्रादि से निर्मित किया गया है और अनेक प्रकार की स्याही लगाई गई है । कहीं-कहीं वर्णों को दोहरा' लिख कर उन्हें रंग-बिरंगा किया गया है।
उ. रचयिता, लिपिकार, संवत्, स्थान, लिखवाने वाले का नाम, ग्रन्थ का नाम, विषय निर्देश प्रादि देने की प्रत्युत्तम प्रणाली जिनसे किसी भी शोध करने वाले को अमूल्य सहायता मिलती है ।
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