Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 287
________________ २६८ श्रध्याय ८ - उपसंहार पुस्तक से सूरदासजी के जीवन पर नया प्रकाश पड़ता है कि वे राज थे तथा भड़ौवा गाया करते थे । उनका बनाया पहला पद जिसके द्वारा श्राज तक गोवर्द्धनजी की पूजा का प्रारम्भ होता है इस पुस्तक में बताया गया है | जन्मांध होने का भी पक्का प्रमाण मिलता है । यदि मत्स्य प्रदेश के साहित्य को हिन्दी साहित्य के काल विभाजन की दृष्टि से भी देखा जाय तो मत्स्य की देन पीछे नहीं पड़ती। शुक्लजी ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बांटा है - १. वीरगाथाकाल, २. भक्तिकाल, ३. रीति तथा शृंगारकाल, और ४. गद्यकाल । मत्स्य के साहित्य में वीरगाथा काल ग्रथवा भक्तिकाल इस रूप में तो नहीं पाए जाते जैसे हिन्दी साहित्य के इतिहास में देखे जाते हैं, किन्तु उन कालों में साहित्य की जो प्रवृत्तियाँ रहीं तथा जिस प्रकार का साहित्य निर्मित हुआ वे सारी बातें यहाँ के साहित्य में भी पाई जाती हैं । हमारा संकेतित काल हिंदी रीतिकाल के अंतर्गत आता है किंतु हिन्दी साहित्य की संपूर्ण प्रवृत्तियां प्रचुर मात्रा में देखी जा सकती हैं । हिन्दी के आदि युग की वीरगाथाओं के रूप में हम सुजानसिंह, जवाहरसिंह, प्रतापसिंह, रणजीतसिंह आदि से संबंधित वीर साहित्य को ले सकते हैं । सुजानसिंहजी की वीरगाथाओं का चित्रण 'सुजान चरित्र' के अतिरिक्त ग्रन्य किन्हीं ग्रंथों में नहीं पाया जाता, परन्तु यदि चित्रण की पूर्णता देखनी हो तो उदयराम का 'सुजान संवत्' एक अच्छा ग्रंथ है । जाचीक जीवण के 'प्रतापरास ' में अलवर के प्रारम्भिक काल के संघर्ष का ऐतिहासिक चित्रण है । यह ग्रंथ प्रताप के साहसिक कार्यों की अमर कहानी है । रणजीतसिंह और लार्ड लेक की लड़ाई का बहुत-सा स्फुट साहित्य भी मिलता है । मत्स्य के वीर साहित्य में दो तीन विशेषताएं दिखाई पड़ती हैं १. वीरगाथा काल की तरह मत्स्य प्रदेश में शृंगारप्रधान वीर-काव्य नहीं है । यहाँ की लड़ाइयां सुंदरियों को पाने के लिए नहीं लड़ी गईं वरन् राज्य की स्थापना तथा उसका गौरव बढ़ाने हेतु लड़ी गई । यहाँ के वीरगाथाकार भूषण की राष्ट्रीय पद्धति का अनुकरण करते प्रतीत होते हैं । ये वोर देश की स्वतंत्रता और उसकी स्थिरता के लिए तलवार चलाते थे, जनाने महल का गौरव बढ़ाने के लिए नहीं । उनके व्यक्तिगत जीवन में विलास नाम की कोई चीज थी ही नहीं । २. हिन्दी के आदियुग की वीरगाथाओं का ऐतिहासिक मूल्य बहुत कम है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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