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अध्याय ६
गद्य - ग्रन्थ गद्य का प्रयोग मनुष्य-जीवन के साथ रहा है । जब से मनुष्य ने बोलना सीखा तबसे वह गद्य बोलता आया है । यह अवश्य है कि इसका लिखित रूप कम मिलता है । पुराना पद्य मिल जायेगा, किन्तु पुराना गद्य 'नुमायशी चीज' हो कर हमारे सामने आता है । हजार वर्ष पहले का पद्य हमें उतना प्रभावित नहीं करता जितना पांच सौ वर्ष पहले का गद्य। इसका सबसे बड़ा कारण है गद्य के लिखित रूप का अभाव । इसमें सन्देह नहीं कि मनुष्य पारस्परिक सम्भाषण में गद्य का प्रयोग करते आये हैं और जब कोई समाचार आदि लिखने होते हैं तब गद्य का ही प्रयोग किया जाता है, किन्तु प्रायः सामयिक होने के कारण गद्य में स्थायित्व नहीं होता । कार्य हो जाने के पश्चात् तत्सम्बन्धी गद्य व्यर्थ हो जाता है, अत: नष्ट कर दिया जाता है । इसके विपरीत काव्य में स्थायित्व के लक्षण होते हैं-अच्छा काव्य सब काल और सब देशों के लिए होता है और इसी कारण वह अधिक समय तक बना रहता है। पद्य की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं जो इसे स्थायित्व प्रदान करती हैं। पद्य में काव्य का गुण पाने पर एक चमत्कार उत्पन्न हो जाता है जिसके लिखने, पढ़ने और सुनने में आनन्द प्राता है। पहले तो वैद्यक, ज्योतिष, गणित, विज्ञान आदि की पुस्तकें भी पद्य में हो लिखी जाती थीं क्योंकि उन्हें याद रखने में सरलता होती थी। आज की विद्या 'पुस्तकस्था' है किन्तु उस समय जब मुद्रण-यन्त्र का आविष्कार नहीं हुआ था, बहुत-सा काम मौखिक ही होता था और इस रूप में गद्य की अपेक्षा पद्य अधिक सुविधाजनक होता है ।
मत्स्य प्रदेश में गद्य का प्रचार उतना ही पाया गया जितना हिन्दी भाषाभाषी अन्य प्रदेशों में । इसमें सन्देह नहीं कि उस समय भी यह बात स्वीकार की जाती थी कि व्याख्या करने में पद्य की अपेक्षा गद्य के द्वारा आसानी होती है और इसी कारण किसी बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए स्थान-स्थान पर गद्य का प्रयोग किया जाता था। मत्स्य-साहित्य की खोज करने पर गद्य का प्रयोग अनेक रूपों में पाया गया। प्रमुख ये हैं
१. उपनिषद् ग्रन्थों के सूत्रों की व्याख्या के रूप में ।
२. पुस्तकों की प्रस्तावना के रूप में। यह प्रथा अपेक्षाकृत कम ही थी। साधारणत: पुस्तक के प्रथम अध्याय, सर्ग, उल्लास, प्रकाश, प्रभाव, विलास, तरंग, मयूख, आदि द्वारा प्रस्तावना कार्य सम्पादित किया जाता
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