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अध्याय ७
अनुवाद - ग्रन्थ
अनुबाद के क्षेत्र में मत्स्य-प्रदेश काफी आगे रहा । भरतपुर के दो प्रसिद्ध कवि सोमनाथ तथा कलानिधि के नाम इस विषय में अग्नगण्य हैं। सोमनाथजी मथुरा से तथा कलानिधिजी अन्य राजाओं के दरबारों से पाकर वैर के राजा प्रतापसिंहजी के अाश्रय में रहने लगे । अन्य ग्रन्थों के अतिरिक्त इन दोनों कविश्रेष्ठों ने अनुवाद का काम भी बड़ी लगन के साथ किया और दोनों ने मिल कर संपूर्ण वाल्मोकीय रामायण का अनुवाद कर डाला ! सोमनाथ ने अयोध्या, प्रारण्य, किष्किधा और सुन्दर काण्ड को लिया और कलानिधि ने बाल, युद्ध तथा उत्तर काण्ड को संभाला और इस प्रकार संपूर्ण रामायण को हिन्दी पद्य में परिवर्तित कर दिया । इनके द्वारा किए गए अनुवादों का पूर्ण संग्रह तो मुझे प्राप्त हो नहीं सका फिर भी जो सामग्री मिली है उनके आधार पर कहा जा सकता है कि इतना बड़ा काम करने पर भी काव्य-छटा का उत्कर्ष निभाया गया है। इसके अतिरिक्त महाभारत के अनेक पर्यों के अनुवाद भी मिले। कर्ण पर्व की भाषा गोवर्द्धन नाम के एक कवि ने की जिसमें पद्य के अतिरिक्त गद्य भो मिलता है। यह बहुत पुराना अनुवाद है। रसानंद द्वारा की गई अश्वमेध पर्व की 'भाषा' भी मिली है ।' यह अनुवाद संवत् १८७५ वि० के पास पास का है ।
काव्य तथा अनुवाद दोनों की दृष्टि से देखने पर विदित होता है कि मत्स्य में किया गया यह कार्य निम्नकोटि का नहीं है। वैसे प्रायः छायानुवाद ही किया गया है क्योंकि उस समय की प्रचलित प्रणाली कुछ इसी प्रकार की थी। परन्तु इस अनवाद में काव्य के गुण भी पाए जाते हैं ।
भागवत का अनुवाद करना उस समय एक प्रचलित बात थी, विशेष रूप से इस ग्रंथ के दशम स्कंध का प्रचार था । इस दशम स्कंध में ही भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है । इस कार्य के करने में भी माथुर कवि सोमनाथ आगे रहे। इनके द्वारा किया गया 'दशम स्कंध भाषा उत्तरार्द्ध' ग्रन्थ प्राप्त हुआ है। उपनिषदों के भी अनुवाद हुए । कलानिधि ने तैत्तिरीय, मांडूक्य, केन और प्रश्नोपनिषद् के अच्छे अनुवाद किए और व्यवस्था करते समय अपनी बुद्धिमत्ता का सुन्दर परिचय दिया। कलानिधि संस्कृत के उच्चकोटि के विद्वान् थे और
' 'संग्राम-रत्नाकर', 'संग्राम-कलाधर' नाम के दो ग्रंथ बताये जाते हैं। हो सकता है ये दोनों
ग्रंथ एक ही हों और इन में रसानंद द्वारा लिखित संपूर्ण महाभारत का पद्यानुवाद हो ।
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