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अध्याय ७-अनुवाद-ग्रंथ
जिल्द समेत १॥)' । पुस्तक की लम्बाई चौड़ाई काफी है और सुन्दर लिपि में लिखे हुए ४५ पत्र हैं। इस पुस्तक को संवत् १८६१ वि० में पूर्ण किया गया -
"ते मुहि पर अनुकूल, रहौ सिया सानुज सहित । हती जगत की सूल, पाहि पाहि रघुकुल तिलक || ससि रस रूद्र वदंत, संवत महिनौ वृद्धि रवि ।
कवि कृत गुप्त मतंत, एकातिथि ससि दिन सुचित ।। १" इस पुस्तक का प्रारम्भ इस प्रकार हुअा है
"श्री मन्न महागणाधिपतये नमः अथ विग्रह कथा तृतीय हितोपदेश की देविया कृत लिष्यते।
श्री रघुवर के पद कमल सुमरि मनाय गणेश ।
कही कथा विग्रह तृतीय भाषा हित उपदेश । तिनराजकुमारिन सहृदभेद। सब सुन्यौ सुचित है विगत हेत ।। पुनि विप्र विश्नु सर्मा सभाग | कछु और कथा को कहन लाग ।।
भवत्प्रसादाच्छु तः । सुखिनो भूता वयम् यदेव भवद्भ्यो रोचते तत्कथयामि ।" कथानक इस प्रकार या
अनुवाद इक कर्पूर देस के मांही । पदमकेलि सरवर उहि ठांही ।। काहू एक समय हरषाई | सब पंछिन मिलि रच्यो उपाई ॥
मूल संस्कृत अस्ति कर्पूर द्वीपे पद्मकेलि-नामधेयं सरः । स च सर्वैर्जलचरपक्षिमिलित्वा पक्षिराज्येऽभिषिक्तः ।। सरल, अविकल और धारा प्रवाह अनुवाद और भी देखें। यथा
' अथ वानर खग की कथाकवित्त नर्मदा नदी के तीर पर्वत है ताके तर, सैमरि को वृक्ष ताप पंछिन को घर है। एक सम्है वर्षा काल भादों की आधी रात , दामिनी दमक रही वरषा को भर है।
५ हमें यह कलमी पुस्तक संवत् १६११ माघ शुक्ल ५ की लिखी मिली
___ 'इति श्री पंचमोपाख्यान राजनीति शास्त्र हितोपदेश संधि कथा चतुर्थ देविया सैन वंस कृतेन समाप्तोयं ॥ ४ ॥
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