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प्रसंग को देखिए
अध्याय ७
इससे संबंधित श्लोक देखिए
करन नृपति गुर सुत प्रबल अस्त्र सकल गुन ग्राम । जुध अयुध करें सुभट सिकल अघट गनि काम || दिय अभिषेष जु करन को कियब सेन सिरदार | अन धन कंचन मनि गुनिक दोन मान जुत भार ।।
अनुवाद ग्रंथ
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ततोऽभिषिक्ते राजेन्द्र निष्कैर्गोभिर्धनेन च । वाचयामास विप्राग्रयान् राधेयः परवीरहा ।
( कर्णाभिषेके दशमोऽध्यायः । ४८ )
इस पुस्तक में दोहा तथा छप्पय छंद की ही प्रधानता है । यद्यपि यह पुस्तक अधूरी है किन्तु कर्णपर्व का बहुत सा अंश या गया है । इस प्रति की पत्र संख्या ६३ है और बहुत छोटे अक्षरों में पास-पास लिखा हुआ है । स्थानस्थान पर इस प्रकार का गद्य मिलता है - 'संजयोवाच', 'धृतराष्ट्रोवाच' के स्थान पर गद्य में 'संजय कहतु है', 'धृतराष्ट्र पुछतु है' आदि लिखा है । युद्धवर्णन में कवि की ओजमयी वाणी को छटा देखिए जो उस समय की वीर- काव्यप्रणाली के अनुरूप है -
प्रातः जुटं दिपिनी वोट पथ्थं समर्थं । छुटै वान वानं प्रमानं सुहथ्र्थं ॥ अयं जुध जोधा कीयं ऊडू भारी । सबै भेद भेदे प्रयुध सम संभारी ॥। १
कहा जाता है कि 'संग्राम रत्नाकर' के नाम से भरतपुर के प्रसिद्ध कवि रसानंद ने महाभारत का अनुवाद किया। यह पूरा अनुवाद तो नहीं मिल सका परन्तु मेरी खोज में 'जैमन अश्वमेध' का अनुवाद प्रवश्य मिला। अनुवाद में दी गई पंक्तियों से विदित होता है कि इस कार्य को करने की आज्ञा राजा द्वारा दी गई थी
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लहि वृजेंद्र प्रज्ञा हितकारी । रसश्रानद निज चित्त विचारी ॥ जैमन प्रस्वमेध की भाषा । रचवे हेत बढ़ी अभिलाषा | ग्रन्थ आरम्भ करने का समय भी दिया हुआ है
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१ सूदन 'के 'सुजान चरित्र' से मिलायें ।
ठार से पच्यानवे, भजि हरचरन निदंभ | कार्तिक शुक्ला सप्तमी, कियो ग्रंथ आरंभ ॥
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