Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 271
________________ २५२ अध्याय ७-अनुवाद - ग्रंथ यह प्रति राजा के लिए लिखो गई थी, और इसके लिपिकार थे चौबे जीवाराम । "चौबे जीवाराम ने, पुस्तक लिष्यौ सुधारि । भूल चूक जो होइ तौ, बांचौ नृपति विचारि ।। श्री जी सदां सहाइ ।। संवत १९०३ । मिती भाद्रपद बदि त्रयोदसी॥ १३ ॥ लिषी भरतपुर गढ़ किले मधि ।। १ ।। पुस्तक का प्रारम्भ इस प्रकार से है श्री.....'न....हा . ."णा... प ..."न..........सं...."म......"त्ना...... र ".'ष्य""""दोहा' इस पुस्तक में इस प्रकार अक्षरों का स्थान छोड़ कर लिखने की प्रवृत्ति स्थान-स्थान पर पाई जाती है। कई अन्य ग्रन्थों में भी इसी प्रवृत्ति का अनुगमन किया गया है। यद्यपि यह पुस्तक अनुवाद रूप में प्रस्तुत की गई है किन्तु काव्य की दृष्टि से भी यह रसानंद के स्वरूपानुसार ही है। गणेश-वंदना देखिए "बिघनहरन असरनसरन, करत सुरासर सेव । मोदकरन करुनाभरन, जय जय गणपति देव ।। छप्पै-सोभित मुकट सिषंड गंड मंडित अलकावलि । करत चंददुति मंद कुंदनिंदक दसनावलि ।। कटि सुदेस पट पीत करन कुंडल छबि छाजै । 'रस अानंद' दुति देषि कोटि मन्मथ छवि लाजै ।। अतुलित प्रताप विक्रम विदित, सकत न स ति और सुमृति भनि । व्रज - मंडन पूरन अंस जय, अवतारी अवतार मनि ।। गणपति, शिव, हनुमान आदि की प्रार्थना के उपरान्त 'राजवंस' का वर्णन है। इस पुस्तक में ६७ तरंगें हैं और प्रत्येक तरंग के अन्त में भरतपुर की प्रचलित प्रणाली के अनुसार एक ही छंद की पावत्ति है, जिसका चौथा चरण विषय के अनुसार बदल जाता है । इस ग्रन्थ में निम्न तीन चरणों को प्रावृत्ति हुई है वृज अवनि कर भरतार सुजस भंडार गुन प्रागार है । जदवंसमनि अवतार श्री बलवंत भूप उदार है ।। तिहि हेत रस अानंद यह संग्राम-रत्नाकर रच्यो। १ बीच के अक्षर नहीं हैं जो इस क्रम से होने चाहिए म म ग धि तये मः थ ग्रा र क लि ते। इन सब को मिला कर यह बनता है'श्री म न म हा ग णा धि पतये नमः अथ संग्राम र ना कर लिष्य ते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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