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अध्याय ७-अनुवाद-ग्रन्थ
नहीं थी। संस्कृत तथा फारसी ग्रन्थों के ही अनुवाद हुआ करते थे। इसी के लिए विद्वान पंडित दरबारों में रखे जाते थे। मत्स्य-प्रदेश का हस्तलिखित साहित्य देखने पर पता लगता है कि दरबारों में १. संस्कृत, हिन्दी तथा फारसी के विद्वान, २. रीति तथा काव्यकार, ३. लिपिकार, ४. नोतिकार, ५. कर्मकाण्ड के विद्वान पंडितों का सम्माननीय स्थान था। राजामों के यहां रीतिग्रंथों का निर्माण, धार्मिक पुस्तकों का हिन्दी-रूपान्तर आदि साहित्यिक कार्य बराबर चलते रहते थे। राजा यद्यपि स्वयं विद्वान नहीं होते थे, किन्तु गुणीजनों का सत्कार करते थे और अपना पाश्रय प्रदान कर उन्हें अपने-अपने कामों में लगाए रखते थे। उस समय पुस्तकों को लिपिबद्ध करना भी एक कला थी। जीवाराम चौबे, बालगोविंद गुसांई, देवा बागबान, गोवर्द्धन आदि कई ऐसे लिपिकारों के नाम मिले हैं जो राजदरबारों में नियमित रूप से ग्रन्थों को लिपिबद्ध करने का काम किया करते थे। पुस्तकों को लिखने में पृष्ट पत्र पर चमकदार काली स्याही का प्रयोग होता था। शीर्षक तथा हाशिये के लिए और रंगों की स्याही भी काम में आती थी। कुछ पुस्तकों' में चित्रों का होना इस बात को बताता है कि यहां के दरबारों में चित्रकला विशारदों को भी आश्रय मिलता था। अलवर के म्यूजियम में एक उत्कृष्ट कोटि का चित्र-संग्रह है जिनमें कुछ चित्र राज्य के कर्मचारियों द्वारा निर्मित किए गए हैं। इन संग्रहों की अंग्रेज विद्वानों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अन्य भाषाओं के ग्रन्थों को हिन्दी का कलात्मक रूप देने में इन राज्यों द्वारा अच्छी व्यवस्था की गई थी।
कलानिधि ने वालमीकि रामायण के बाल, युद्ध और उत्तर काण्डों का अनुवाद किया है। इन्होंने भी अनुवाद करने में उसी प्रचलित परम्परा का अनुकरण किया जो हमें अखैराम तथा सोमनाथ में मिलती है। सूदन के काव्य में भी हमें वही प्रवृत्ति मिलती है । इन कवियों द्वारा अपनी रचनाओं के प्रत्येक अध्याय या सर्ग के उपरान्त अपने प्राश्रयदाता की प्रशंसा में एक छंद की पुनरावृत्ति की गई है। इस छंद के प्रथम तीन चरण तो सभी जगह एक समान होते हैं किन्तु चतुर्थ चरण में वर्ण्य-वस्तु के अनुसार परिवर्तन हो जाता है जिससे कथानक का संकेत बराबर मिलता रहता है । युद्ध काण्ड के अंतर्गत कलानिधि
' जैसे चत्रभुजदास' कृत 'मधुमालती' । हमें इस पुस्तक की दो प्रतियां मिलीं जिनमें से
एक सचित्र है। २ टी० एच० हेन्डले-अलवर एन्ड इट्स पार्ट ।
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