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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
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................. प्रतापसिंह वल्द मोहब्बतसिंह मनसबे पंच हजारी जात व पंच हजारी सवार व खिताबे राजाबहादुर व अताये आलम व नक्कारा सर अफराज शुद वाके
५ दहम शहर'......' इस प्रकार प्रतापसिंहजी 'राजाबहादुर' बने ।
पहले पत्र भी पद्य में लिखे जाते थे । गद्य-पद्य मय पत्र का एक नमूना देखें।
गो ........ स्वा ............ (इधर का अंश फट गया है। किन्तु गोस्वामी'
स्पष्ट लिखा मिलता है।) मी ............ श्री पद अंबुज के सदा, रहत तुहारे ध्यान ।
करत रहत रजनी दिवस, रूप सुधारस पान ।। ध जा प्रेम की गोपिका, सूनीयत ही निज कान ।
उन हूं ने कछु सरस तुम, प्रगट लषे नेनान ।। र सिकन के सिरताज तुम, करुणासिन्ध दयालु ।
तुम्हरी कृपा कटाक्ष तै, सब कोऊ होत निहाल ।। जी बन धन नेहीन के, तुमही कृपानिधान ।
तुमरी महिमा को कोऊ, कहि बिधि करै बषान। जो .....
(फट गया है।)
ग
.....
प्रथम तुकनि के प्रथम अंक, सब जोर निहारौ।
दसदनि में लिष्यो सु जहि, विध नाम तिहारौ ।। यह 'गोस्वामी श्रीधरजी जोग' यह पत्र लिखा गया है। इस १८१७ में लिखे गए पत्र के गद्य भाग का नमूना इस प्रकार है--
_ 'अब आपकी कृपा तें जीवासिर ह वै गयो हूं । श्री जी करेगें तो जलदी वा कार्ज तें छूट जावोगो पाप कृपा राषत रहोगे अरु पत्र लिषत रहोगे। मेरी बोहत बौहत जै श्रीकृष्ण की कहै --
दीप दिवाकर वसू अरु ससी, सुक्ल पच्छ बुद्धवार । चैत्रमास सुभ नंद तिथ, संवत मिती विचार ।
१ यह पत्र गोस्वामी श्रीधरानंदजी को लिखा गया था। श्रीधरानंदजी ने 'साहित्य-सार. चिन्तामणि' आदि ग्रन्थ लिखे हैं। महाराज रणजीतसिंह ने इनको 'कवीन्द्र' की उपाधि दी थी। यह पत्र १७०-७५ वर्ष पुराना है। तिथि पद्य में है संवत् १८७१ ।
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