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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-सम्बन्धी
श्री बदनसिंघ भुवाल जदुकुल मुकट गुनन विशाल है। तिहि कुमर सिंघ सुजान सुंदर हिंद भाल दयाल है ।। तिहि हेत कवि शशिनाथ ने रचिय सुजान विलास है।
पुतरी सिंघासन की कथा किय प्रथम भइय प्रकास है ।। यह पुस्तक अपने पूर्ण रूप में विद्यमान है । इसके अन्त में लिखा है
सनमान दै वरदान दै इमि प्रान पं अति पाइकै ।
सुर नागरी गुन अागरी सब गई स्वर्ग लुभाइकै ।। कवि ने अपने संबंध में भी कुछ जानकारी दी है
मिश्र नरोतम नरोतम, भये छिरौरा वंस ।
रामसिंघ के मंत्र गुरु, माथुर कुल अवतंस ॥ सोमनाथ के पिता 'नीलकंठ' मिश्र भी अच्छे कवि थे। सोमनाथ तीन भाई थे-अनंदनिधि, गंगाधर और ये स्वयं । ग्रन्थ-समाप्ति का समय इस प्रकार है
ताने सूरजमल्ल को, हुक्म पाइ परकास । रच्यो कथा बत्तीस मय, ग्रंथ सुजानि विलास ॥ सहस गुनी शशिनाथ की, विनती उर मैं धार । चूक भई कछु होइ तौ, लीजो सुकवि सुधार ।। संवत् विक्रम भूप को, अट्ठारह से सात ।
जेठ शुक्ल तृतिया रवी, भयो ग्रंथ अपरात ॥ इस समय सूरजमल युवराज थे
'व्रजराज यह जुवराज सूरजमल्ल राजहु नित्य ही ।' विवाह संबंधी दो पुस्तकें मिलीं-१ विनयसिंहजी की पुत्री का विवाह : रामलाल कृत, २ बलवंतसिंहजी का विवाह : गणेश कृत। १ विवाह विनोद-कवि रामलाल कहते हैं
बंदि भवानी पदकमल, भूपसुता को ब्याह । वरणों मति मेरी जिती, तिह को चरित अथाह । रामलाल सुकवि समस्त गय हय पाय , अति हरषाय गाय कीरति कहावनी। जाके जन्म लेत भूप विनय निकेत आई ,
इंदरा समेत अति परम सुहावनी ॥ पुस्तक से पता लगता है कि राजा अपने सरदारों से परामर्श करते थे। जैसे दशरथजी ने राम को युवराज बनाने के लिये पांच आदमियों से परामर्श चाहा था। उसी प्रकार
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