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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-सम्बन्धी
कीनौ श्री दिमान सनमान लै हुकम कही , दीघ में कटारे वारे महल बताए हैं। मदति मरंमति कराय के तयारी लाय , भूपति सरूप सकुंटुबित बुलाए हैं। पाए दीघ नृपति विछोह के सरूपसिंह ,
बंधुन समेत हेत हियै सरसाए हैं ।। विवाह की तिथि १८८६ वि० वैसाष सुदि १० थी
आई पीतपत्री छत्री बंस अवतंस श्री, वृजेंद्र छत्रपति महा उत्साह है। संवत् १८८६ में वैसाष सुदि ,
दसे बुधवार को भली तिथि विवाह है। काम करने वाले अफसरों के नाम भी दिए गए हैं
तहां कारषाने नाना पतिराम हैं। बकसी बालमुकंद निहारे काम हैं।
दयाचंद सुत जन लाल दीवान हैं। मुतसद्दी मुषिया लाल हरध्यान हैं ।। नगर में फैला हुआ आनंद देखिए
सकल सहर में बटे हैं गड़ गाड़ा भरे , गलिन गिरारे चौक जैसो जहां चहिये। जो है वा महल में सु चहल पहल में ही , फूले फले भले मनमानी मौज लहिये। नित्य बटें विरहा' अनेक झोरी भर भर , जैसे ई सुहार बरवाई२ जेती कहिये । व्याह श्री ब्रजेंद्र महाराज वलवंत केमें ,
ठौर ठौर आनद समूह माह रहिये ।। साथ में धाऊ ग्यासीराम, दीवान भोलानाथ, नंदलाल आदि सभी सरदारों को लेकर मोरछल लगाये हुए महाराज की सवारी चली जा रही है। भरतपुर के राजाओं में आज भी यह प्रथा है कि जब कोई पुनीत अवसर होता है तो पहले बिहारीजी की और उसके उपरान्त वेंकटेश महाराज की 'झाँकी' करते हैं । दशहरा पूजन के अवसर पर जब महाराज की सवारी फौज पलटन के साथ निकलती थी तो धाऊ, दीवान आदि राज्य के विशेष अधिकारी भी मोरछल लगा कर साथ में होते थे। उस समय भी किले में स्थित बिहारीजी की झाँकी पहले करते थे और उसके उपरान्त वेंकटेश महाराज की।
१ भीगे चने। २ दाल की बनी।
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