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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन जुरे सकल सिरदार, तब भूपति से कही।
कहौ सुमंत्र विचार, वाई के सनमंध की ।। और निश्चय हुग्रा कि
राठ्यौर सिंह सरदार' नाम । वाकौं गढ़ बीकानेर धाम ॥ राजा ने संबंध निश्चय कर दिया और विवाह की तैयारियाँ होने लगीं। 'विवाह विनोद' की कविता साधारण कोटि की है
असो सुभ साजिके समाज श्री विनेस भूप , उपमा अनूप कविराजन जताई है। वसु है सुवासव है विस्वदेव की विभूति , विश्वपति परम प्रवीन ने बनाई है ।। उमगि समद्द सरहद्द प्रापनी 4 जाय . सजन समाज सनमाने सिध्य पाई है। मिलि सिरदारसिंघ जु को संग लाए भए ,
वांछित सफल देस देस में बड़ाई है। विनय बाग में बरात ठहराई गई और बहुत अच्छा प्रबन्ध किया गया
__ 'श्री सिरदार की फौज-विष छिन एक में वाटी सुधारस भीनी।' इस विवाह में नेग आदि में काफी दान-दक्षिणा दिए गए। बारहठ गोपाल को एक नेग में एक हाथी मिला था
सिंह गज पै असवार है, श्री सरदार उदार ।
सौ वारैठ गुपाल को, दियो सुनेग मझार ॥ विवाह वेदविधि से सम्पन्न हुआ
वेदन में विधि जो बरणी संग ले तिय कूरम ने वह कीनी। जेवर लापन के धरणीधर धेनु धराधिप कोटि नवीनी॥ ले जलु अंजुली में हर को धर ध्यान सौं साषानुचारि प्रवीनी ।
श्री सरदार महीपति को अति हर्षित ह तनया निज दीनी ॥ २. दूसरे विवाह-विनोद में गणेस कवि लिखते हैं
'श्री वृजेंद्र बलवंत कौ बरनत ब्याह-विनोद ।' बलवंतसिंहजी का यह विवाह विछोह निवासी सरूपसिंहजी की लड़की के साथ हुआ था। विवाह संपन्न कराने के लिये सरूपसिंहजी को डीग के 'कटारे वारे महल' बता दिए गए थे--
सरदारसिंहजी के नाम पर ही 'सरदारशहर' नाम का नगर बसाया गया।
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