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अध्याय ४ -- नीति, युद्ध, इतिहास-सम्बन्धी
'जब ते रावराजा प्रतावसयंघ जन्म पायौ । तब ते राज गढ़ में मानद अधिकायो। संमत सत्रासै पूरन समय सवाई जयसिंह सुरगवासी भये। उरु इनके पीछे महाराज इसुरीस्यंघजी वरजोर जैपुर गद्दी व्राज गये। ता कारन इनते छोटे बंधु महाराज माधोस्यंघ पिता के लेष प्रमान राज्य को दावा करि अामेर पै पाए.........'
काव्य की दृष्टि से इस पुस्तक को बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता, परंतु इसमें सन्देह नहीं कि इसमें दी हुई घटनाएं ऐतिहासिक हैं। अलवर का ऐसा अच्छा इतिहास शायद ही कोई और हो । कवि अपने सम्बन्ध में लिखता है
इलाकं जो अलवर के गूजूफी गाम ।
कि है बारहठ कौम शिवबख्श नाम ।। प्रतापसिंहजी के बारे में लिखा है
दिया उसको ईश्वर ने खुद अख्तियार ।
किये मौजे ढ़ाई से ढाई हजार ।।' अलवर, भरतपुर प्रकरण में जब प्रतापसिंह सूरजमल के यहां पहुंचे, तो लिखा है
कहा कौन इरशाद आये यहां । कहां के हैं सरदार जाते वहां ॥ इन्होंने कहा राव परताप नाम । कि है राजगढ माचहेड़ी मुकाम ।। दिया भेज के हलदिया छाजूराम ।। किया जाट से जाके इसने सलाम ॥ हुआ जब कि जव्हार४ मसनद नशीन ।
वमूजिब हुकुम फौज थी लाख तीन ॥ जब प्रतापसिंह के बाद बख्तावर सिंह को गद्दी मिली तो लेखक ने लिखा है
बख्तावर पाट परताप के बिराजै।
बावन किलों के बीच शादियाने बाजे ॥ बख्तावरसिंहजो के विषय में बारहठजी का कथन है
हुस्न जहां ही होसला, है व्हां ही भगवान ।
खल्क टटोलत खाक में, बखत टटोलत जान ।। उनके साथ में भी हल्दियावंशोत्पन्न नन्दरामजी रहते थे। शिवबख्शजी
१ ढाई गांव इस प्रकार थे-१ माचेडी, २ राजगढ,३ प्राधा राजपुर-कूल ढाई गांव । २ छाजूराम हल्दिया प्रतापसिंहजी का मंत्री था। ३ सूरजमल जाट--भरतपुराधीश । ४ जव्हार-जवाहरसिह । ५ जवाहरसिंहजी की तीन लाख फौज इतिहास-प्रसिद्ध बात है।
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