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अध्याय ५ - नोति, युद्ध, इतिहास-संबंधी
कंपि कंपि कंपिनी पुकारत अंगरेजन पे, अंग अंग अंग सौं त्रिभंग करि डारेंगे। हल्ला में हारेंगे फिरंगी हजार भांति , जालम जटा के ' कटा करि डारेंगे । धायौ कलकत्ता ते भरता भारी फौजन कौं , पूरब को दानौ प्राय वज में झलकरा। चौंके द्रगपाल छत्रभारी महि मंडल के , जैपुर उदपुर उठाय पायो लूगरा ।। माचोरी कौ राव' सो तो जग में जनानौं भेष , करि पहिरै कर चूगै अनवट घूधरा । कहत परसिद्ध महाराज रनजीतसिंघ ,.
सत्रै हजार दल मारे भट भूगरा ।। इसके बाद पांचवी पंक्ति यह है
तेगनते तोड डारे मूड अंगरेजन के , परे रहे खेत में भिखारी के से कूलरा ।। माचौ घमसान कोस तीन लों लोथि परी , झरि गये सूर साचे मुहरा अगार तें। बाई यों भुजा ते मार कीनी जसवंत राव , परे रहे रंड मुंड लगि वे मलाहि ते ॥ कहत जसराम अंगरेज जंग हारि गए , जीते जदुवंसी सूर लरत उछाह ते । दोऊ दीन जानौ महाराज रनजीतसिंह,
हारि में फिरंगी फन पट क्यों मिलावते ।। (उ) अरे फिरंगी अग्यान, यहां ते उठि जा रे गुलाम ,
ह्या फते नहीं पावेगा। ये है गढ़ भारा, जैसा दूसरा सितारा , या का राम रखवारा, गीदी हाथ नहीं आवंगा। ये हैं जदुवंस, इनमें राजन को अंस , इन मारयो मथुरापति कंस, गीदी तोहू कू नवावेगा। यो मति जानै जट्ट है थोरे इनके, घु दछिन बुलाय तेरे डेरे लुटवावेगा।
' भरतपुर के महाराज रणजीतसिंहजी का शासनकाल संवत् १८३४ से १८६२ वि० है।
इस समय अलवर में विनयसिंहजी का शासन था। २ 'मलाह' नाम का एक छोटा गांव भरतपुर नगर से बिलकुल लगा हुआ है
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