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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन इसी पुस्तक की एक अन्य प्रति तुह[ल] सीरामजी' के लिये लिखी हुई और पाई गई । अलवर में भी इसकी कई प्रतियां मिलीं। डीग के बारे में लिखा है
रजधानी जदुवंस की, ब्रजमंडल सरसाति ।
इंदुपुरी अमरावती, तिहि सम कही न जाति । अपने संबंध में कवि लिखते हैं
श्री विक्रम नरनाह को, सुजस कथा बत्तीस । भाषा करि वरनों तिन्हें, कृष्ण चरण धरि सीस ।। जितियक मेरी बुद्धि है, तिहि सम कही बनाइ ।
छिमित होउ कविराज सब, चूक्यौ लेउ बनाइ ॥ ३. एक अन्य विक्रम विलास मिला है जिसके रचयिता 'गंगेस' हैं। यह ग्रन्थ बहुत पहले लिखा गया था, इसका निर्माणकाल संवत् १७३६ है
संवत सत्रह से बरस, बीते उनतालीस ।
माघ बदी कूज सप्तमी, कीनों ग्रन्थ नदीस ।। और अन्त में लिखा है--
विक्रम विलास गंगेस कृत, तब लग या जग थिर रहै।' इसमें 'विक्रम-वैताल' की कथानों का उल्लेख है । यह पुस्तक अलवर राज्य की स्थापना से पहले लिखी गई है और इसे श्री बलवंतसिंहजी के पठनार्थ माचाड़ी में लिखा गया था।
४. विक्रम चरित्र पंचदंड-कथा को सोमनाथ के वंशज वैद्यनाथ ने लिखा। इस पुस्तक का समय लेखक ने इस प्रकार दिया है
ठारह से चौरासिया, भादां शुक्ल सुपक्ष ।
मंगलवार चतुर्दसी, भयौ ग्रंथ प्रत्यक्ष ।। श्रीमाथुर-कुल-मुकुट-मरिंग सोमनाथ कवि-वंस वैद्यनाथ कवि विरचितो विक्रम दंड प्रसंग ॥ __इस पुस्तक के प्रथम चार पत्र नहीं हैं। २१वें छंद से पुस्तक का प्रारम्भ होता है। इसमें उन पंचदंडों की कथा है जो विक्रम की सास दमनी के कहे अनुसार विक्रम द्वारा प्राप्त किए गए थे
१. विजै दंड, २. सिद्ध दंड, ३. तमहरन दंड, ४. काम दंड, तथा ५. विषहर दंड।
' पुस्तक लिषायतं लालाजी श्री धर्म मूर्ति धर्मावतार हरि गुरु सेवा परायण श्री तुहसी रामजी
ने । संवत् १९११ । २ श्री श्री श्री श्री श्री बलवंतसिंहजी लिषतं शुभस्थाने माचाड़ी अलवर मध्य देवा बागवान
माली। इस माली ने अनेक पुस्तकें लिपिबद्ध की।
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