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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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गोरेन की बीबी डकराय के पुकार करें, भागो हो कंथ जसमंत चढ़ि मारेगा । पानि परे वृजभूमि भोरे काहू और ही के , वही बृजवारा तेरी भुजा कू उखारेगा । अडे सूरवीर तेरे गोलान कू गिनत नाहिं , ले के समसेर जोधा जोधन कू पछारंगा। उरक तिलंगी चपरासी सब हारि गए, जसमंत अौतार कलकत्ता लौं गैर पारंगा ।।
४. दिल्ली-दुल्हन
मागे ते सरस साजे सबल जड़ाऊ साज , बाजे दीह दुंदभी अवाजे जीति वासे को। तेज मुष मरवट से हटी परताप पुंज , पोज कर कंकन है षग्ग रंग रासे को। लगन बसंत-पांचे उलझत दोनों दिसा, नपति बराती सर्व सहर तमासे कौं। दुलहन दिल्ली पौर तोरन को मार ,
वृजदूलह बलवंत प्राये डेरा जनवासे कौं। इन कवित्तों में रणजीतसिंहजी के समय में अंग्रेजों द्वारा भरतपुर का किला जीतने के लिए किए गए युद्धों से सम्बन्धित प्रसंग हैं। इतिहास में सुविख्यात है कि भरतपुर किले का घेरा अंग्रेजों को बहुत मँहगा पड़ा। चार-चार बार आक्रमण करने पर भी जब किला किसी प्रकार सर नहीं हुआ तो कूटनीति और छलबल से इस किले को लिया गया।
युद्ध-साहित्य में कुछ पुस्तकें वास्तव में उत्कृष्ट हैं इनमें सूदन का लिखा 'सुजान चरित्र' तथा जाचीक जीवन का 'प्रतापरासो' विशेष उल्लेखनीय हैं। इन दोनों का ही ऐतिहासिक महत्त्व है और इनमें वर्णन-विविधता भी मिलती है । इस युग में कुछ साहित्य ऐसा भी रचा गया जिसमें अतिशयोक्ति है, इनमें 'विजयसंग्राम' और 'यमनविध्वंसप्रकास' के नाम लिए जा सकते हैं। स्फुट छंदों में जाटों के अातंक का वर्णन है । जाट और अंग्रेजों की लड़ाई न केवल इतिहास में एक महत्वपूर्ण पृष्ठ है वरन् साहित्य में भी उस समय की वीर तथा रौद्र रस पूर्ण कविताएं अपना एक विशिष्ट स्थान रखती हैं।
मत्स्य प्रदेश में कुछ कथा-साहित्य भी उपलब्ध होता है । भक्ति से संबंधित कथा-साहित्य का वर्णन अन्यत्र हो चुका है तथा हितोपदेश आदि की कथाओं का वर्णन अनुवाद के प्रसंग में होगा। महाराजा विक्रमादित्य से सम्बन्धित बहुत
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