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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी से मिलान करने पर ठीक पाया गया है जैसे अठारह सौ चार (१८०४) में मरहठों को हटाना, १८०५ में सलावत खां को परास्त करना, १८०६ में पठानों पर चढ़ाई करना, दिल्ली लूटना प्रादि ।
२. युद्ध में भाग लेने वाली हर प्रकार को सेनामों को संख्या ठोक दो गई है।
३. पुस्तक में दिए गए नाम सब ऐतिहासिक हैं। जिन मुसलमान मरहठा, जाट आदि ने युद्धों में भाग लिया उनके नाम इतिहास द्वारा प्रमाणित हो चुके हैं।
४. पुस्तक में पाए हुए नगरों के नाम जैसे डीग, कामा, पथैना, नोंह सभी उन्हीं स्थानों पर आज भी हैं जिन स्थानों का वर्णन सुजानचरित्र में मिलता है। उनमें बताए गए किले भी मौजूद हैं, यद्यपि अाज वे खण्डहर हुए जा रहे हैं।
५. ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने युद्धों को स्वयं देखा था। पुस्तक में दिए गए वर्णन एक प्रत्यक्षदर्शी को कृति जैसे विदित होते हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि यह पुस्तक इन युद्धों के दस-बारह वर्ष बाद लिखी गई होगी किन्तु पुस्तक पढ़ने पर ऐसा प्राभास मिलता है जैसे घटनाओं को प्रत्यक्ष देखने के उपरान्त उन्हें शीघ्र ही वर्णित किया गया हो।
६. अपनी इस रचना में सूदन ने कुछ कवियों की नामावली दी है जिसकी संख्या लगभग १७५ है । यद्यपि यह तो नहीं कहा जा सकता कि नामावली कालक्रमानुसार ही है किन्तु यह मानने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती कि इसमें उन्हीं कवियों के नाम है जो सूदन के पूर्ववर्ती हैं। इन्हीं नामों में एक नाम सोमनाथ भी आता है। यदि यह सोमनाथ वही है जो सूरजमल के दरबार में था तो सोमनाथ और सूदन को एक मानना कैसे सम्भव हो सकता है । इसके अतिरिक्त यह भी समझ में नहीं पाता कि जब सोमनाथ ने अपने सभी ग्रन्थों में अपना नाम सोमनाथ ही रखा है तो फिर केवल 'सुजानचरित्र' में ही सूदन नाम क्यों ग्रहण कर लिया। इन बातों को देखते हुए इन दोनों कवियों को एक मानना युक्तिसंगत नहीं।
७. पुस्तक में कवि अपना, अपने राजा का तथा अन्य व्यक्तियों का वर्णन भी देता है।
८. इस पुस्तक में मुसलमानों की वार्ता खड़ी बोली में लिखी गई
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