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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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[शेष पृष्ठ १६२ का 1 ४. भीर भरी रहै भाड़न की नित पावें घनी गनिका गुनवारी।
चारन भाट कलावत टोली मचावत द्वारै कोलाहल भारी।। मांगन वारै षराब करै कवि दत्त बड़े जस के अदिकारी।
दारी बड़ो दुख तदे अजी हमें च्यार दिनां ते मिली सिरदारी ।। इस कवि में उग्रता, व्यंग्य, भाषा-पटूता, साथ ही अवसरवादिता प्रादि बातें पाई जाती हैं। अवसर को देख कर शिवदानसिंह, महताबसिंह. कायस्थ आदि की प्रशंसा भी करते रहते थे। इनकी कविता सुन्दर और सशक्त है तथा भाषा स्वच्छ और अलंकृत। दो एक उदाहरण देखिए--
होरा
षानि ते कढ्यो है परसान पं घड्यौ है फेरि , कंचन मढ्यो है त्यौं अनूप ज्योति जाग्यो तें । कीमत बढ्यो चढ्यो कर में प्रवीनन के , प्रादर अपार पाय प्रेम रस पाग्यौ तें । दत्त कवि कहै लग्यो मुकट महीपन के , हार बनि कामनि हिये में अनुराग्यौ तें । ये हो सुन हीरा भयो जगत जहीरा मूढ़ ,
ताह ५ नेक ना कठोरपन त्याग्यो ते ।। लगादगीर
थर थर कांपे देह देखत तगादगीर , सिथिल सरीर बुद्धि धीर न गहत है। कामनी कलेश करै घर में हमेशा हाय , सेवा करियै कौं चित नेक न चहत है । दत्त कवि कहै जाके सिर पै करज होत , कस कर छाती निसिवासर दहत है। चोरन में गनती करत सब लोग, ताही
सौं साहूकारन में साखी ना रहत है। झाली महारानी की मृत्यु
प्यारी भूप भारी दुलारी भूप भारे की सु , भारी गुन मंडित दुनी के अोक प्रोकन में । भारी सनमांन सान सीतलता सुजानपनों , भारी दांन दोलति लुटावति अरोक में । दत्त कवि कहै धन्य झाली महारानी जग , जाकी प्रभुताई सौं समाने शत्रु शोक में । छाजी छवि सुमति दराजी कलि कीरति के , राजी करि राजहि विराजी देवलोक में ॥
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