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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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कई प्रकार के कागज का प्रयोग किया गया है, कुछ देशी और कुछ विदेशी । स्याही चमकदार और गहरे काले रंग की लगाई गई है । विराम लगाने, दोहा, चौपाई, कविता प्रादि शीर्षक लगाने में कहीं-कहीं लाल स्याही का उपयोग भी होता था। जहां कहीं कुछ काटने को अावश्यकता पड़ती थी तो हरतार लगाया जाता था। इन हस्तलिखित प्रतियों में कुछ लेख बहुत हो सुन्दर और स्पष्ट तथा मोटे अक्षरों में हैं । राजदरबार में इन हस्तलिखित पुस्तकों को बड़े यत्न से रखा जाता था । जिल्दें सुन्दर बनतो थों और उन पर रेशमी कपड़ा चढ़ाया जाता था । एक ही पुस्तक में आवश्यकता के अनुसार छोटे बड़े अक्षर लिखे जाते थे । उस समय लोगों में संग्रह की प्रवृत्ति थी। उच्च कोटि के कवियों की कृतियां लिपिबद्ध की जाती थीं और कुछ लोग अपनी रुचि के अनुसार पद, कवित्त, सवैया, दोहा अादि संग्रह कर लेते थे। कुछ ग्रन्थों का बहुत प्रचलन था और उनको अनेक हस्तलिखित प्रतियां मिली हैं, जैसे
(१) प्रचलित धार्मिक ग्रन्थ-तुलसी के सभी ग्रन्थ लिपिबद्ध मिले । इनमें मानस, विनय, कवितावली तथा रामाज्ञा (सुगनौती) पर विशेष ध्यान दिया गया था। मानस के अनेक काण्डों की अलग-अलग बहुत-सी प्रतियां मिलीं । 'तुलसी' के साथ वाल्मीकि रामायण की भी प्रतियां पाई गईं । महाभारत की हस्तलिखित प्रतियां कम हो मिलीं। संभव है इसका कारण इसका वृहद् प्राकार हो । इनके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण, महाभारत, भागवत, शिवपुराण, देवीमहात्म्य, हितोपदेश आदि के पद्यानुवाद प्रस्तुत किए जाते थे। इन अनुवादों का कुछ भी उद्देश्य रहा हो किन्तु ये इस बात का प्रमाण हैं कि इन ग्रन्थों को अोर लोगों की रुचि थी और इनका पाठ भक्ति तथा श्रद्धा के साथ किया जाता था।
(२) बिहारी सतसई-की अनेक प्रतियां मिली हैं जिनमें कछ सटीक भी हैं। इसी प्रकार देव के ग्रन्थों की भी हस्तलिखित प्रतियां हैं। केशव की रामचन्द्रिका पर भी लोगों का ध्यान गया । देवजी तो इधर-उधर जाते ही रहते थे और उनके साथ इनके ग्रन्थों का प्रचार भी बढ़ता था। पद्माकर के फुटकर छंद बहुत-से लोगों ने संग्रह किये थे।
(३) सूर के पदअनेक संग्रह मिले, किन्तु ये अपेक्षाकृत बहुत छोटे हैं। इनके संकलन का कार्य प्रायः बल्लभकुली मंदिरों में होता था। सर के पदों की हस्तलिखित पुस्तकें बहुत-से मन्दिरों में पाई गईं जिनमें से आरती और पट खुलने के समय सूर के पदों का गायन होता था। इन
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