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अध्याय १-पृष्ठभूमि
प्रतियों को देखने से पता लगता है कि कालान्तर में लोगों ने अपने बनाये हुए भी अनेक पद सूर के पदों में सम्मिलित कर दिये ।
(४) हितोपदेश आदि संस्कृत ग्रन्थ-हितोपदेश का बहुत प्रचलन था और हमारी खोज में इस ग्रन्थ के अनेक अनुवाद मिले जो गद्य और पद्य दोनों में हैं।
अलवर और भरतपुर इन दोनों स्थानों में बहुत कुछ सामग्री मिली ! मत्स्य प्रान्त के इन दोनों प्रमुख स्थानों के उपलब्ध साहित्य का अध्ययन करने पर कुछ बातें विशेष रूप से दिखाई देती हैं---
१. अलवर का काव्य अधिक सौम्य है। उसमें न उदंडता है और न उग्रता; किसी बड़ी लड़ाई का वर्णन भी नहीं है। कहीं कहीं उपद्रव करने वालों पर जो सख्ती की गई उसी को बढ़ा कर लिख दिया गया है । राजाओं के प्रति बहुत ही श्रद्धा थी और जो भी ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं वे किसी न किसी राजा के 'विलास' या 'प्रकास' हैं। दत्त कवि, जिनकी उग्रता उल्लेखनीय है, इस नियम के अपवाद कहे जा सकते हैं।
२. भरतपुर का काव्य बहुत उग्र और तीव्र है। उसमें काफी गर्मी और कटुता है । लड़ाइयों के कारण इसमें वीर-रस का अच्छा समावेश हो गया है । भरतपुर के कवि कुछ स्वतंत्र प्रकृति के भी प्रतीत होते हैं। राजाओं की गुण-गाथाओं के अतिरिक्त कुछ स्वतंत्र ग्रन्थ भी हैं, जैसे-सिंहासन बत्तीसी, नवधा भक्ति, महादेव को व्याहुलो, शिवस्तुति, ब्रजलीला तथा अनेक ग्रन्थों के अनुवाद । अलवर का क्षेत्र इतना विस्तृत प्रतोत नहीं होता।
३. अलवर में अंग्रेजों के प्रति कोई भी विद्रोह-भावना नहीं देखी जाती। किसी ने तो अंग्रेजों के इशारे पर अलवर की बहुत-सी लज्जाजनक बातें कह डाली हैं। संभव है उन बातों में सत्य का भी अंश हो, किन्तु कोई भी सम्मानपूर्ण व्यक्ति इस प्रकार को बातें कहना पसन्द नहीं करेगा। अंग्रेजों ने अनेक बार अलवर राज्य में हस्तक्षेप किया। केडल नाम के अंग्रेज की कारगुजारी प्रसिद्ध ही है ।
४. भरतपुर में अंग्रेजों के लिए और साथ ही मुसलमानों के लिये बहुत उग्र पद्य लिखे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अंग्रेज और मुसलमान
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