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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
कंपत नसत कुम्हलानी अकुलानी परी ,
केहरि की कौरी में कुरंग की करौरी सी ॥ इसी प्रकार सभो रागों के स्वरूप का चित्रण किया गया है। पुस्तक के नाम से ही पुस्तक का विषय ज्ञात होता है।
१ नवधा भक्ति २ राग
३ रस-इन सब का सार अत: 'नवधा भक्ति राग रस सार' नव प्रकार को भक्ति के बारे में भी कवि की उक्ति देखें
१ स्त्रवन सुनत पुलकित हृदय नयन द्रवत जलधार । २ कीरंतन वानी कि हित गद गद मुदा बिदार ॥ ३ समरन तेरे मंत्र तन प्रफुलित सब अंग अंग । ४ परस बन अभिराम छवि चढे सुपानि रंग ।। ५ अरचन तें अानंद रति वंदन विहचल दीन । ६ ७ दरसंतन उत्सव सुरस प्रगट सखा सुख लीन ॥ ८ ६ आत्म निवेदन रिद्धि सिद्धि मन वंछित सोई साथ । नवधा विधि शिवराम कवि चढ़े प्रेम हरिहाथ ॥ नवधा भक्ति सुभाव यह सकल सिद्धि को सारु । वरन सिंधु संसार तै लहै सुपावै पारु ।। नवधा भक्ति हिये धरहु सूरज मल निहसंक ।
प्रीति राषि शिवराम सौं जैसे नव को अंक।।२ कवि ने कई स्थानों पर संस्कृत के श्लोकों को प्रयोग भी किया है। उदाहरण के लिए १४ प्रकार के कायस्थ देखिए
१ नैगमा २ माथुरा ३ गौरा ४ माडीर ५ वल्लभीस्तथा । ६ श्रीवास्तव्य ७ नागर श्चैव ८ सूर्योच ६ सक्सेनयः ।। १० संभरी ११ संभरश्चैव १२ कुलश्रेष्ठ १३ चुनाहकः । १४ अहिष्टानक कायस्था एते चतुर्दश स्मृताः ॥
१ यहां भक्ति के 8 प्रकार बताये गये हैं-१ श्रवण २ कीर्तन ३ स्मरण ४ स्पर्श
५ अर्चन ६ वदन ७ दासत्व ८ उत्सव ह प्रात्म-निवेदन। २ कवि का गणित-ज्ञान देखने योग्य है। नौका अंक सर्वदा ६ ही रहता है, जैसे ६३,
६-३, ६ ५७६ ५+७+-६ = १८, १+८= ६ । ६ का कितना ही गुणा करें अंगों का योग सर्वदा ६ ही रहेगा। कवि का कहना है कि सूरजमल कितने ही बढें किन्तु शिवराम से एक सी प्रीति रखें । पुरस्कार में भी उन्हें ३६,००० रुपया मिला था। इसमें भी ३+६= 8 की प्रीति का पालन किया गया।
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