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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
१२३ जाती थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस लड़के को कृष्ण बनाया जाता है उसे ही रानो अथवा अन्य सुन्दर स्त्री का पार्ट दिया जाता है और उसके गाने तथा भावभंगी कामोत्तेजक होने के साथ-साथ अश्लील होते हैं। अनेक प्रकार के बेढंगे प्रदर्शन उसी रंग-मंच पर किए जाते हैं जहां दस मिनट पहले कृष्ण की लीलाओं का प्रदर्शन हो रहा था। मन्दिरों में अमरसिंह, नौटंकी, तिरियाचरित्र, सियाहपोश न होकर कुछ भगवद्भक्ति सम्बन्धी कथाएँ लो जाती थीं-जैसे ध्रुव लीला, प्रह्लाह, मोरध्वज, सुदामा अादि । मुझे याद है कि पहले रास और लीलाओं के कारण श्रावण के महीने में नगर में एक उल्लास सा छा जाता था और रक्षाबधन तक तथा उसके पश्चात् भी यत्र-तत्र रास होते रहते थे। उन दिनों आधी रात के बाद नगाड़े की चोट सुन कर स्वतः पता लग जाता था कि रास हो रहा है। इन रासों का रूप बहुत बिगड़ गया और बुरी तरह अश्लील गानों की भरमार होने लगी। अब यह प्रथा ही समाप्त होती जा रही है । सिनेमा के इस युग में 'फ्रो' होने पर भी रास कोई नहीं देखता। ब्रज के कुछ स्थानों-जैसे मथुरा, वृन्दावन में अब भी रास-प्रणाली चल रही है। किन्तु मत्स्य प्रदेश में यह प्रवृत्ति बहुत कम हो चली है।
___ मत्स्य प्रदेश में गोवर्धन की भक्ति आज भी बहुत व्यापक है । गुरुपूर्णिमा के दिन 'मुड़ियापूनों' के नाम से गोवर्धन में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। वैसे परिक्रमा तो पूरे साल तक बराबर लगती ही रहती है । बीच में कुछ समय के लिए भरतपुर के राजचिन्ह के नीचे 'श्री गोकुलेन्दुर्जयति' हो गया था। सेवर' में श्री ब्रजेन्द्रबिहारीजी का एक मन्दिर है। महाराजा जसवंतसिंह ब्रजेन्द्रबिहारीजी के दर्शन नित्य प्रति करते थे ! कामां में चन्द्रमाजो का मंदिर और घाटा नामक स्थान में गुसाईयों के स्थान आज तक हैं। राम की भक्ति भी बहुत रहो। भूतपूर्व अलवर नरेश ने अपने विजय मंदिर में भगवान राम और सीता की प्रति आकर्षक मूर्तियों को प्रतिष्ठित कराया। 'अट्टा' नाम से राम का एक मन्दिर शहर में भी है जिसकी बहुत प्रतिष्ठा है। भरतपुर के किले में बिहारीजी का मन्दिर बैरागियों का बताया जाता है। कहा जाता है एक साधु को जटायें उसी स्थान पर झाड़ियों में उलझ गई थीं और भगवान ने प्रगट होकर स्वयं ही जटायों को छुड़ाया। इसी स्थान पर बिहारीजी की प्रतिष्ठा की गई। इसके
१ भरतपुर से चार मील पर एक कस्बा है जहां किसी समय भरतपुर-महाराज सेना सहित
रहते थे। २ जटा छुड़ाते हुए भगवान और साधु की मूर्ति मन्दिर में विराजमान है।
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