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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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में बैल पर बैठे चले आ रहे थे, परन्तु नगर के निकट आने पर उन्होंने भव्य रूप धारण कर लिया, जिसे देख कर सखियों ने पार्वती से कहा
है धन्य भागि तेरौ या जगमें तिनि असो वर पायो। है सोरह बरस प्रमान वेस कौं महादेव सौ छायो । अरु कोटि कोटि कंदर्प नि हूँ कौं दिल को दरप दरायो। है प्रेसी और को कामिनि जाकौं लषत न चित्त चुरायो ।। तब भेष दिगंबर धारि ईसने औरनि कौं डरपायौ।
बिनु कंचन मनि भूषन के अंगनि उनही जु लषायो । पाँचवें उल्लास में विदा और गणेश तथा स्वामिकातिकेय के जन्म की कथा है। विवाह की रीति व्रज में प्रचलित प्रणाली के अनुसार है
तब दूधाभाती करवाई। दुहू की झूठनि दुहुनि षवाई ।
गौने की अब रीति करावौं । गांठ जोरि केर सुष बरसावौं ।। गगणेश जन्म
एक समय मुसिक्याइ सिव लष्यो गौरि को रूप ।
एक दंत परगट भयौ, बालक तवे अनूप ।। स्वामिकातिकेय
अरु संकर के बीज सों, षटमुख भयों प्रसिद्धि ।
स्वामिकार्तिक नाम पुनि, तासों कह्यौ सुवद्धि । सबों के वाहन
ऊंदर वाहन गज वदन, षटमुख वाहन मोर ।
शिव को वाहन बैल है, देवी को हरि जोर ।। और अब शिव का दर्शन कीजिये
जरद जटानि में फुहारै जिमि गंगाधर , हार शेष हिरदें त्रिनेन रूप न्यारे कौं। गरल गरे में जोर जाहर जलूस वारी, प्राधे अंग तरुनी सनेह के पत्यारे कौं। सोमनाथ एरे उर अंतर निहारि भव , पारावार पारत हकीकत हुस्यारे कौं। भसम सिगारें जो लिलार पर धारें जोति ,
चंद्र की कला की वा पिनाकी प्रानप्यारे कों। इस पुस्तक के सम्बन्ध में कुछ बातें
१. काव्य के सभी उपादानों, जैसे अलंकार, प्रकृतिवर्णन, रसप्रसंग, आदि से युक्त वर्णन प्राप्त होते हैं ।
२. पार्वती और शिव का शृंगार कहीं भी मर्यादाहीन नहीं हुआ है।
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