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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी 'षिसां', 'षीसा', 'कीसा' तीनों रूप मिलते हैं । अनेक स्थानों से उपयुक्त किस्से इकट्ठे किए गए हैं जिनमें अनेक बीरबल से संबंधित हैं। अकबर, जहांगीर, नूरजहां, शाहजहां आदि के भी किस्से हैं। इस पुस्तक में 'रामकिसन और उसकी लुगाई' का किस्सा काफी विस्तार से दिया गया है। इसको 'अकलनामा' इसी दृष्टि से कहा जा सकता है कि इसमें ऐसी कथाएँ हैं जिनसे हम दुनिया की बहुत सी बातें जान कर शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
दूसरी पुस्तक है 'अक्कलनामा'। इसके लेखक (लिपिकार) महाराज बलवंतसिंहजी के प्रसिद्ध लिपिकार जीवाराम हैं। पुस्तक की समाप्ति संवत् १८९६ में हुई।'
इस पुस्तक के दो भाग हैं- (१) वार्ता प्रसंग (२) सामान्य ज्ञान प्रसंग । वार्ता प्रसंग में १६३ वार्ताएँ हैं और लगभग ६६ पत्रों में लिखी गई हैं। इसके उपरान्त निम्न प्रकरण लिए गए हैं(१) सूबा प्रमान-बंगाल, आसाम, बिहार, इलाहाबाद, अवध, आगरा,
मालवा, षानदेस, बैराटु, गुजरात, अजमेर, दिल्ली, लाहौर । (२) मनोरथ की सिद्धि- (i) उद्योग (i) भवतव्यता (३) फिर 'सब्द समुदाय' हैं- (i) दो दो के- निरपेक्ष, विचार-दो
काम राजाओं के ; राज्य के
मूल दो-नीति, सौर्य । (ii) तीन तीन के- राज्य के सहायक-संघ,
सुभट, दक्ष अधिकारी; उनत्तर होते दुख--मोता, पिता, गुरु
पुस्तक के अंत में इस प्रकार लिखा है
___ "इति श्री अक्कलनामा संपूर्ण शुभ ।" दोहा- दसरथ सुत रघुवंस मनि, व्यंकटेस तिहि नाम ।
श्री वृजेन्द्र बलवंत के, करौ सदा मन काम ॥ श्री जी सदा सहाइ संवत १८६६ । लिखितं चौवे जीवाराम। लेषक सरकार को बासी ताल फरे को। लिपि सुभस्थान भरथपुर मध्य किले में श्री श्री राधाकृष्णाभ्यां नमः ।। १
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