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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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इस ग्रन्थ का प्रयोजन इस प्रकार लिखा गया है
कीनौ बिनविलास में संपति सुषमा धाम ।
राजनीति या ग्रंथ को पूषन भूषन नाम । यह पुस्तक उस राजनीति से संबंधित है जिस राजनीति की व्यवस्था श्री रामचन्द्र तथा वशिष्ठ के बीच हुई थी और जो रामराज की सुन्दर भूमिका प्रस्तुत करती है। इससे स्पष्ट है कि राजाओं तथा उनके आश्रित कवियों का ध्यान राज्य की सुन्दर व्यवस्था की ओर भी रहता था
राम-वशिष्ठ प्रबोध में वरनी मति अनुमार । और इसी प्रकार पुस्तक के अंत में भी
'इति श्री महाराव राजा बहादुर विनेसिंह बलवंत विरचितायां कवि हरिनाथ कृते श्री रामचन्द्र वसिष्ठ संवादे विन विलासे राज श्री दुषन भूषन बननं संपूर्ण । संवत १८७५ माघ शुक्ला १० गुरुवार ।'
स्पष्ट है कि यह पुस्तक मौलिक नहीं है किन्तु इस उपयोगी प्रसंग को भाषा में प्रस्तुत किये जाने का संपूर्ण श्रेय कवि को ही है ।
नीति-संबंधी बहत सी बातें अक्लनामों में भी मिलनी हैं। उनका प्रधान उद्देश्य बहुत सी जानने योग्य बातों का एक स्थान पर संग्रह करना प्रतीत होता है। हम यहां केवल दो अकलनामों की चर्चा कर रहे हैं
१- अलवर के संग्रहालय में प्राप्त 'अकलनामा' एक 'बादशाही किस्सा' समझिये जैसा ग्रन्थ के प्रारंभ में लिखा हुआ है
'श्री गणेशाय नमः । अथ अकलनामा पातसाही षिस्सा लिष्यते । बात'
इस पुस्तक में पत्र संख्या ५१ है किन्तु प्रति अपूर्ण है। बहुत कुछ देखभाल करने पर भी रचयिता का नाम नहीं जाना जा सका, किन्तु इसमें संदेह नहीं कि यह पुस्तक अलवर में ही लिखी गई, जैसा कि इसकी भाषा से स्पष्ट विदित हो रहा है । इस में अकल की बातें, कहानी और बीरबल की कहानियों के रूप में 'बात' शीर्षक से लिखी गई हैं । बात -
पातसाह तहमुर साह समरकंद की फतह करी। तहां येक लुगाई अंधी कैद में आई। जदी पातसाह में कही तेरो नांव क्या है ? तब लुगाई ने कही, मेरा नांव दौलत है। तब पातसाह ने कही, क्या दौलत अंधी होती है ? तब लुगाई नै कही, अंधी थी जब लंगड़े के घर पाई। और षिसा-पातसाह अकबर बीरबल सु कही
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