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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
अतएव इसमें संदेह नहीं रह जाता कि इसकी समाप्ति इन्हीं के समय में हुई। कवि का नाम, छंद-रचना आदि के संबंध में निम्न कथन देखने योग्य है
चौपई छंद दोहा छपै कवि जाचिक जीवन नाम है।
जुगम जोय वरनन करू जो कूरमकुल ठाम है || राजा के वंश का वर्णन करते समय कवि ने उनका संबंध राम' से स्थापित करने का प्रयास किया है । राम द्वारा किये गये अश्वमेध यज्ञ का वर्णन इस प्रकार दिया हग्रा है -
सुनत राम रिष के वचन, सावकरण सजकीन ।
गयो बाज बनवास में, ते लव कर गह कीन । और वंश की यह परम्परा मुहब्बतसिंहजी के पुत्र तक चलाई गई है
धज बंधी भ्रम धारिये, जोरावर जग जाप ।
उपजे मोबतसिंह सुत, तप पूरण परताप ॥ प्रथम प्रभाव में राजवंश का वर्णन करने के उपरान्त कवि ने प्रतापसिंहजी का 'थाना'* छोड़ना बताया है
तज थान चले ततकाल ही । इसके पश्चात् प्रतापसिंहजी भरतपुर के महाराज की राजधानी में पहुंचे
मुकाम दो मझ कीन | ब्रज निकट डेरा दीन ।
घर षबर पहौंची जाय। को भूप उतरे आय ।। ये डीग' पहुंचे जहां राजा सूरजमल निवास करते थे। प्रताप के साथ इनके मंत्री छाजूरांम' थे।
* अलवर राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । राजा के पुत्र न होने पर इसी ठिकाने से
उत्तराधिकारी लिए जाते रहे हैं । वर्तमान महाराज भी यहीं के हैं। १ डीग का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है
तहां इन्द्रपुर सो ठांव । तननगर दीघ सुनाम ।। २ छाजूराम खण्डेलवाल वैश्य थे। इनका जन्म हल्दिया परिवार में हुआ था। हल्दियावंश
का अलवर तथा जयपूर दोनों राज्यों में बड़ा मान-सम्मान था। किसी समय जयपुर राज्य के मंत्री और सेनापति जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर हल्दिया ही थे। छाजूराम हल्दिया इतिहासप्रसिद्ध व्यक्ति हैं और सरकार आदि इतिहासकारों ने भी इनका उल्लेख किया है। बनारस निवासी श्री दामोदरदास खंडेलवाल ने 'खंडेलवाल जानि का इतिहास' (अप्रकाशित) लिखते समय छाजूराम हल्दिया के व्यक्तित्व का प्रामाणिक चित्रण किया है । प्रस्तुत प्रबन्ध के लेखक ने भी इस विषय से संबन्धित सामग्री खंडेलवाल जागति' के 'जाति का इतिहास' नामक विशेषांक में प्रकाशित कराई थी। 'हल्दिया वंश' के प्रमुख व्यक्तियों पर हाथरस से प्रकाशित 'खंडेलवाल हितैषी' में एक लेखमाला प्रकाशित हई थी-लेखक का नाम है श्री नरसिंहदास हल्दिया, जिनका कहना है कि उनके पास प्रकाशित सभी बातों के प्रमाण उपलब्ध हैं।
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