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अध्याय ४ - भक्ति-काव्य
इसी समय में किये गये भागवत, महाभारत, रामायण, दुर्गासप्तशती आदि के अनुवाद, जो भक्ति-भावना से प्रेरित होकर ही किए गए थे 'अनुवाद' नामक अध्याय के अंतर्गत ठीक रहेंग, क्योंकि वे ग्रंथ अविकल अनुवाद नहीं तो छायानुवाद अवश्य हैं। प्रह लाद, ध्र व आदि की कथाएँ भी लिखी जाती थीं। इस स्थान पर सोमनाथ द्वारा लिखित 'ध्रुव विनोद' का कुछ विवरण दिया जा रहा है।
'ध्रुव विनोद' में ५ उल्लास हैं। इस ग्रंथ में 'हरदेवजी सहाय' लिखा गया है।' यह पुस्तक अनेक छंदों में लिखी गई है किन्तु कथानक का अति प्रचलित रूप ही ग्रहण किया गया है । पुस्तक में मंजी हुई भाषा का प्रयोग है। प्रार्थना के कुछ दोहे इस प्रकार हैं
ध्यावतु चरननि को सुविधि, गावति गुननि मुनीस । जनवत्सल श्रीवत्स नित, जय जय श्री जगदीस ।।
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मंत्रय जू उच्चरे, आप विदुर सों बात । ध्रव चरित्र को भक्त लषि, अति ही हरषित गात ।।
कमलनाभि की नाभि ते, भयो कनक अरविंद । तामें कमलासन भयो, सुवरन वरन अनंद ॥
तदुपरान्त कथा का प्रारम्भ होता है
उत्तानपात के जुगल भाम । जेठी सुनीति लघु सुरुचि नाम ।। ही निपट भांवती सुरुचि बाल ।
अरु नहि सुनीति सों नृप दयाल । ध्रव का अपमान होने पर माता ने उन्हें भगवान की प्राप्ति करने का उपदेश दिया
अरुण कमल दल के छवि वारे। निपट विसाल नैन अनियारे ।
१ भरतपुर के राजाओं की हरदेवजी के प्रति बहुत श्रद्धा रही है । कहा जाता है कि भरतपुर
के महाराज गोवर्द्धन से हरदेवजी के पुजारी को लिवा कर भरतपुर में लाये थे और एक मंदिर भी स्थापित कराया जो अब तक विद्यमान है । पहले तो इस मंदिर की जीविका बहुत थी परन्तु धीरे-धीरे कम होती चली गई । हरदेवजी के पश्चात् राजवंश में लक्ष्मणजी की भक्ति-परंपरा चली, ऐसा अनुमान है।
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