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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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युद्ध संबंधी साहित्य के अतिरिक्त दो तीन प्रकार की सामग्री और मिलती है, जैसे प्रकूलनामे, राजाओं के मनोविनोद संबंधी वर्णन, इतिहास, विवाह आदि के वर्णन । उस समय कुलनामे लिखने की परम्परा-सी प्रतीत होती है । हमारी खोज में दो तीन कलनामे मिले। इनमें अनेक प्रकार की सामान्य ज्ञान संबंधी सामग्री होती थी । इन पुस्तकों को यदि सामान्य ज्ञान का कोष भी कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी । किन्तु अध्ययन करने पर पता लगता है कि इन
कुलनामों में सुनी सुनाई बातों का ही उल्लेख किया जाता था— ग्रनुभूत सामग्री की कमी रहती थी। वैसे इनमें ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा जीवन संबंधी बहुत सी सामग्री उपलब्ध होती है ।
कथा-साहित्य के अन्तर्गत दो प्रकार का साहित्य मिलता है— एक तो पौराणिक कथाओं से संबंधित जिसमें राम, कृष्ण, शिव, गंगा आदि के आख्यान हैं | इनके साथ ही कुछ भक्तों की कथाएँ भी मिलती हैं जैसे ध्रुव, प्रह्लाद यादि । दूसरे प्रकार के कथा साहित्य में हितोपदेश की कहानियां ली जा सकती हैं । उस समय सिंहासन बत्तीसी का बहुत प्रचार था और मत्स्य के कई कवियों ने इस ओर भी ध्यान दिया । ये कहानियां गद्य और पद्य दोनों में मिलती हैं । हमारी खोज में हिन्दी गद्य के अतिरिक्त नागरी लिपि में लिखी उर्दू - गद्य की भी एक पुस्तक प्राप्त हुई ।
हस्तलिखित पुस्तकों में वैद्यक और ज्योतिष के बहुत से ग्रन्थ मिलते हैं । इनका एक अच्छा संग्रह हिन्दी साहित्य समिति भरतपुर में है । इन विषयों को, साहित्य से दूर होने के कारण, हमने छोड़ दिया है। अधिकांश हिन्दी पुस्तकें तो प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद मात्र ही हैं ।
राजाओं के मनोविनोद से संबंधित कुछ पुस्तकें प्रत्येक दरवार में पाई गईं । इन पुस्तकों को राजाओं के व्यक्तिगत जीवन का प्रत्यक्षीकरण कह सकते हैं। इन पुस्तकों की विशेषता वर्णन की उत्कृष्टता है जो राजानों द्वारा शेर आदि की शिकार का वर्णन, होली के दरबार का वर्णन, लाल लड़ाने के अवसरों का वर्णन, यात्राओं का वर्णन आदि प्रसंगों में देखी जा सकती है । दो 'विवाहविनोद' भी मिले। इनमें एक लड़के को शादी और दूसरे में लड़की की शादी के वर्णन हैं ।
इतिहास नाम से केवल एक ही हस्तलिखित पुस्तक मिली जो अलवर के बारहट शिवबख्श दान गूजू की लिखी हुई 'अलवर राज्य का इतिहास' नाम से प्रसिद्ध हुई। इसमें अलवर राज्य की कुछ ऐसी बातें भी लिखी हुई हैं जिनसे
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