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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी इतिहासकार का पक्षपातपूर्ण होना लक्षित होता है। वैसे मत्स्य के युद्ध साहित्य में ऐतिहासिक तथ्यों का ही प्रतिपादन किया गया है और उस समय की प्रचलित प्रवृत्ति अतिशयोक्तिपूर्ण कथन से बचाया गया है। सूदन का लिखा 'सुजान चरित्र' उस समय के इतिहास के लिये सुन्दर सामग्री प्रदान करता है और इसी प्रकार जाचीक जीवण का लिखा 'प्रतापरासो'। इन ग्रन्थों की यह विशेषता है कि वर्णन करते समय सैनिक, घोड़े आदि की संख्याओं को भी जैसा का तैसा बताया गया है।
अकबर की राजनीति बहुत प्रसिद्ध और सफल रही है। उनके 'आईन' का कई भाषानों में अनुवाद हो गया है। मत्स्य में भी इस ओर कुछ प्रयास किये गये । 'अकबर कृत राजनीति' नाम से एक पुस्तक अलवर राजभवन पुस्तकशाला में मिली। यह पुस्तक ब्रज भाषा से प्रभावित गद्य में लिखी गई है। इसमें राजाओं के उपयोग की बहुत सी बातें बताई गई हैं। उदाहरण के लिए इस पुस्तक में कहा गया है कि जब कोई फरियादी ग्रावे तो उसका 'केस' नोट कर लेना चाहिये और उन केसों को नम्बर से निबेटना चाहिये ताकि पहले पीछे होने की स्थिति न होने पाये । दंड के भी दर्जे बताये गए हैं। जैसे पहले १-उपदेश और तरकीब से काम लेना, २-दंड देना, ३-अंगभंग करना, और ४-मृत्यु दंड, जब कोई भी अन्य उपाय काम न दे सके। राजारों के लिए अनेक उपयोगी बातों का संकेत किया गया है, जैसे १-किसान के साथ बहुत रियायत करनी चाहिये, २-हंसी-मजाक अधिक नहीं करना चाहिये, ३-किसी की बुराई करने से दूर रहना चाहिये, और ४-जो काम करना हो सोच-विचार कर करना चाहिये । इस पुस्तक में बताया गया है कि न्याय किस प्रकार किया जाय, राजा की चर्चा किस तरह की होनी चाहिये, राज-नियम कैसे होने चाहिये, ग्रादि । इसका अधिक वर्णन इसी पुस्तक के अनुवाद तथा गद्य प्रकरण में मिल सकेगा।
राजनीति की एक पुस्तक देवोदास ने भी लिखी है। ये कविराज करौली के आश्रित थे। इनका निवास-स्थान तो अागरा था किन्तु ये अक्सर रियासतों में चक्कर लगाते रहते थे। 'राजनीति' नाम होने पर भी इस पुस्तक में सामान्य नीति का ही वर्णन है। कवि ने 'नीति' (सामान्य नीति) की बड़ी प्रशंसा लिखी है
नीति ही तें धरम धरम ही तें सकल सिद्धि , नीत ही तें प्रादर समाज बीच पाईये । नीत तें अनीत छूटे नीत ही तें सुख लूट , नीत लिये बोलें भलो बकता कहाईये ।।
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