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अध्याय ४ - भक्ति - काव्य शिव के नत्य का भी एक वर्णन देखें
सनि के संदेस, नाच्यौ महेस. विसरयो अटूट, सिर जटाजूट । गंगा तरंग बाढ़ी उमंग, चमचम्यो चंद, लहि दुति अमंद ।। लगि मुंडमाल, अरु द्विरद षाल, मिलि षडषडात, गति लेत जात । च्च अमृत धार, ससि तें सुढ़ार, उर परित पानि, मुंडनि मिलानि ।। अरु जंत्र टूटि, पुनि मुंड कूटि, छिति गिरत षुट्टि, हंस अट्ट अट्ट । घुमरीय लेत, डग भूमि देत, फुकरत संग, उद्धत भुजंग ।। आनंद लद्धि, चपि भुजनि मद्धि, फन को हलाइ, नच्चे सुभाइ। डमरू डमंक, सज्जति अतंक, सिंगी रसाल, बाजंत गाल ।।
अनगन विहंग, बोलें सुढंग, मनु करत गान, ह्व सुख निधान ॥ इस ग्रंथ में भी कवि की वर्णन-प्रतिभा अति उच्च कोटि की है। पार्वती तथा शिव दोनों के वर्णन बहुत विशद और सुन्दर रूप में दिए गए हैं।
तीसरे उल्लास में लग्न-पत्रिका लिख कर भेजो गई है। इस उल्लास में पार्वतीजी की प्रार्थना बहुत ही जागरूक है
तुही ब्रह्म की सिद्धि विद्या सयानी । तुही ज्ञान विज्ञान की वृद्धि सांनी । तुही चंद्र में चन्द्रिका सुद्द जानी । प्रभा भानु में जो सबै यो वषानी । तुही वारुनी, शक्ति है लोक मांनी । तुही भोग में इन्द्र की राजधानी । तुही है सुधा और स्वाहा सयानी । तुही जोग ज्वालामुखी जोगधानी । तुही रिद्धि औ अष्टहू सिद्धि गांनी । तुही सर्वदा राजती व भवानी ।
महिषासुरे मर्दिनी देवि चंडी । जगै जग्ग में जोति जाकी अषंडी। तुही आसुरी किन्नरी नागकन्या । तुही जच्छनी प्रच्छनी रूपधन्या ।
चतुर्थ उल्लास में कन्या-दान किया गया है और साथ ही बरात का प्रागमन तथा दावत आदि का वर्णन है। कुछ मिठाइयों का स्वाद लीजिए
बनी असरमी सेर बडी बरफी अरु पेरा। मोदक मगद मलूक और मट्ठ पहंसेरा ।। फैनी गूंझा गजक भुरभुरे सेव सुहारे । जोर जलेबी पुंज कंद सों पगे छुहारे । निकुती छोटी छांट मंजु मुतिलडू बनाये ।
सरस अमृती पुरमा सुंदर वेस सजाए । और साथ में
तिनमें दई मिलाइ भंग की करि के गोली। दूलह के रूप में शिवजी का वर्णन, उनके नांदिया का श्रृंगार और बरात की तैयारी का अच्छा वर्णन मिलता है। पहले तो महादेवजी अपने असली रूप
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