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अध्याय ४
भक्ति काव्य
व्रजमंडल भगवान कृष्ण की लीलाभूमि है जहां स्थान स्थान पर भगवान कृष्ण के मन्दिर मिलेंगे । मत्स्य प्रान्त में भी कृष्ण की भक्ति का बहुत प्रचार रहा है । किन्तु इस प्रदेश में राम की भक्ति भी कुछ कम नहीं रही । अलवर का तो राजघराना ही सूर्यवंशी है, और अलवर का इतिहास लिखने वाले कुछ विद्वानों ने भगवान सूर्य से इस वंश की परम्परा सिद्ध करने की चेष्टा की है । ' मत्स्य प्रान्त में भगवान राम के अनेक मंदिर हैं । भरतपुर नगर में लक्ष्मणजी के दो प्रसिद्ध मन्दिर हैं | बिहारीजी, जगन्नाथजी, हनुमानजी, देवी, भगवान शंकर आदि यादि के मंदिर भी बराबर पाये जाते हैं। गंगा की पूजा और भक्ति मत्स्य के सभी राज्यों में रही । और ग्राज भी राजस्थान का जन समाज गंगा स्नान के पुण्य को सर्वोपरि मानता है । भरतपुर में गिरि गोवर्धन के प्रति बहुत श्रद्धा है । भरतपुर राजघराने के तो गिरिराज महाराज इष्ट देव भी बने, और यहां नियमपूर्वक गिरिराज महाराज की पूजा की जाती है । अनेक ग्रवसरों पर भरतपुर के राजाओं द्वारा जीर्णोद्धार ग्रादि का कार्य कराया गया । इस सम्बन्ध में 'गिरिवर विलास' नाम की पुस्तक बहुत महत्त्वपूर्ण है । मन्दिरों में नियमित रूप से श्रावरण के महीने में रास लीलाएँ हुआ करती थीं। बड़े मन्दिरों में श्रावरण की तृतीया से रक्षाबंधन तक नित्य ही कृष्ण की लीला होती थी । यह प्रथा अब लुप्त सी होती जा रही है । इसी प्रकार रामलीला भी प्रति वर्ष हुआ करती थी । भरतपुर की रामलीला दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी । अनेक वर्षों तक बन्द रहने के बाद अभी कुछ ही वर्ष पूर्व उसे पुन: उसी पद्धति पर जारी किया है, किन्तु ग्राज न उसका इतना समारोह देख पड़ता है और न इतनी श्रद्धा हो । समय परिवर्तन के साथ साथ मनुष्य की धार्मिक भावनाओं में भी परिवर्तन हुआ । बुद्धिवाद ने श्रद्धा में कमी की और आज की भीषण आर्थिक तथा राजनैतिक समस्याएँ भी पुरानी संस्कारमाला को तेजी से बदल रही हैं। किसी गोवर्द्धन जाने वाले के ये शब्द कितने उत्साह से सुनाई पड़ते हैं
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'नांय मांन मेरो मनुग्रां, मैं तो गोवरधन कूं जाऊं मेरी बीर । सात कोस की दे परकम्मा, मानसी गंगा न्हांऊं मेरी बीर ।'
१ पिनाकीलाल जोशी द्वारा लिखित 'अलवर का इतिहास' (हस्तलिखित)
२ विशेष विवरण अन्यत्र देखें |
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