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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
बलदेव' नाम के एक खण्डेलवाल वैश्य ने 'विचित्र रामायण' नाम का एक सुन्दर प्रबंध काव्य लिखा है । यह हस्तलिखित पुस्तक हर प्रकार से सुन्दर है । इस रामायण में कथा - विभाजन कांडों में नहीं किया गया है, जैसा प्रायः देखने में आता है । कांडों के स्थान में अंकों में कथा-विभाजन किया है अंकों का विवरण इस प्रकार है
अंक १
३
४
५
७
ご
ह
१०
१९१
१२
१३
१४
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जानकी परिणय
सिय रामचन्द्र विलास
वन गमन
सिय हरन
वैदेही वियोग
हनुमान विजय
सेतुबंध
अंगद दूत
मंत्री नय वचन
दशमुख माया कपट
कुंभकर्ण विनाश
मेघनाद संहार सौमित्र शक्ति विभेद
राम संगर विजय
पृष्ठ संख्या ३
त्रय नभ नव ससि समय में माघ पंचमी खेत । पूरण कीनौ राम जस गुरु दिन हर्ष समेत ॥
२२
१७६
विषय-सूची के देखने से पता लगता है कि कवि ने उन्हीं प्रसंगों को लिया है जो कथात्मक हैं | बाल-कांड और उत्तर-कांड के उन प्रसंगों को उसने उपयुक्त नहीं समझा जिनमें कथा को गति रोक कर अनेक अन्य प्रसंगों को देने का प्रयास किया गया है । पुस्तक का प्रारंभ राम-सीता विवाह से होता है और समाप्ति राम की विजय के साथ | विभाजन उसका अपना व्यक्तिगत है जिसमें १४ अंक है । इन्होंने भी इस कथा को नाटक कहा है जिससे अंकों में विभाजन और भी सार्थक प्रतीत होता है ।
२५
४२
४६
६६
८५
६३
१ ये खंडेलवाल वैश्य थे और अपनी इस पुस्तक की रचना का समय संवत १९०३ इस प्रकार दिया है
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११३
१२६
१३५
१५३
१६०
२१६
संवत् १९०३ बसंत पंचमी गुरुवार ।
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