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अध्याय ४ -- भक्ति-काव्य
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लिखित एक प्रबन्ध काव्य है जिसमें मंगलाचरण, भूमिका, गुरुवंदना, प्रात्मपरिचय आदि हैं । इस पुस्तक में ११ सर्ग हैं--
१. प्रस्तावना २. कृष्ण अलक्ष जन्मोत्सव ३. राधामंगल ४. पूतना चरित्र ५. अन्य लीलाएं ६. राधे सगाई १७. गोपोत्सव प्रतीत परीक्षा ८. कृष्ण प्रेम परीक्षा ६. रास क्रीड़ा १०. राधिका विवाह वर्णन
११. विविध राधिका विवाह कवि-कल्पना-प्रसूत है क्योंकि कहा जाता है कि राधा और कृष्ण का विवाह कभी हुआ ही नहीं। कवि ने प्रार्थना के उपरान्त अपने वंश का वर्णन किया है जिससे प्रतीत होता है कि ये लोग भरतपुर राज्यान्तर्गत बयाना, खोह आदि स्थानों में रहे थे और फिर राधाकुण्ड जाकर रहने लगे। वहां भीखाराम के पुत्र रूप में कवि रामनारायण उत्पन्न हुए ---
प्रगटें भीषा राम के सुकृत कियें सुत एक ।
रामनारायण जोतसिन कियौ नाम अविशेक ॥ पुस्तक-प्रयोजन के संबंध में कवि का कहना है
मेरे राधाकृष्ण की द्रढ़ उपासना चित्त ।
यातें भाषा में करू राधामंगल मित्र ।। स्थान-स्थान पर काव्य की गति और भाषा की स्वच्छता देखने योग्य हैं। कृष्ण को प्रार्थना -
नील सरोरुह स्याम काम शत कोटि लजावत । अरुण तरुण वारिज समान दग अति छवि पावत ।। पीत पटित कटि कसन दसन दामिनी विनिदित । अानन अरुण उद्योत ज्योति राका शशि निंदत ।। मन चोरत मुनि मुसक्यात मृदु नेत नेत श्रुति कहत नित । जन जान गुसांई राम उर करहु वास नित हित सहित ।।
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