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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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बलदेव नाम कवि नै विचित्र ,
यह रामचरित भाषा पवित्र ।। अपने काव्य के संबंध में लिखते हैं :
जो सब्द अर्थ चित्रित अनूप । ध्वनि विगह को नामधि स्वरूप ।। जुत भूषन अरु दूषन विहीन ।
कवि या विधि की जो काव्य कीन ।। विचित्र रामायण के कुछ प्रसंगों को उद्धृत किया जा रहा है-- (i) संयोग शृंगार संबंधी कुछ छंद :
उदय विलोकि मयंक को रघुपति परम उदार । वरनन करति सषीन प्रति उपमा विविध प्रकार ॥ भानु को वियोग पाय प्राची रंग कुकम के . रुची है सधाकर की किरनिन छायक। उदधि ऊमंग सौं उतंग होत कंजकुल , मौन साधि साधि रहे छविहि छिपायकें ।। विकसे कमोदिनि के कुल अति चाय भरे , हरर्षे चकोरिन के मंडल सुभाय के। नभ अवकास होत तम को विनास होत ,
• त्रास होत कोकिन के कुल पर आयकै । (ii) शयन का समय हो गया :
सुरति समय पहिचानि, गवन करामन सषिन को ,
कह सारिका प्रमानि, कनक पिंजरा ते वचन । (iii) चन्द्रमा पर एक उक्ति :
रजनी कौं नृपति है सबत अधिक समि , तिमिर वधू को कालरूप के समान है। कामिनि संजोग को है साथी सो सकल भांति , गगन सरोवर कों कमल प्रमान है। मानसरवर कैसौ राजहंस राज अरु , कलित कमोदिनि की निद्रा कौं कृपान है। सुरति के पूजन में प्रथम सुकुभ सो है,
कामवान कारन कराल परसान है ।। इसी अंतिम पंक्ति को इस दोहे में इस प्रकार कहा है :
सुरति सु पूजन के विषे प्रथम कुभ हिममान , काम बान तीछन करन है कराल बरसान ।
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