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अध्याय ४-भक्ति-काव्य
साथ ही मत्स्य प्रदेश में कुछ पहुँचे हुए साधु और फकीर भी हुए जिनमें से एक लालदास का परिचय अन्यत्र कराया जा चुका है। चरनदासियों का प्रसंग इसी अध्याय में आगे आवेगा। राजाओं की वृत्ति साधु महात्माओं की सेवा करने की होती थी।
मत्स्य प्रदेश में हमें भक्ति के कई रूप मिलते हैं१. राम भवित- अनेक कवियों ने राम की उपासना संबंधी विविध छंद और
पद प्रादि लिखे हैं तथा उनके जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाओं को भी चित्रित ि १. राम-करुण नाटक-लक्ष्मण-मूर्छा के अवसर पर । २. हनुमान नाटक-सीता की खोज के प्रसंग में । ३. अहिरावण बध कथा-राम-लक्ष्मण-हरण । ४. जानको मंगल-सीता और राम का विवाह ।
५. रामायण-बलदेव को 'विचित्र रामायण' । २. कृष्ण भक्ति- कृष्ण की अनेक लीलाओं के सरस वर्णन प्राप्त होते हैं । दान
लीला, फागुलीला, नागलीला, माखनचोरो लीला, राधामंगल आदि अनेक सुन्दर प्रसंग हैं । इनके अतिरिक्त भ्रमर-गीत परम्परा का काव्य भी प्राप्त होता है, जिसमें निर्गुण-सगुण का व्यापार उसी खूबो के साथ निभाया गया है जैसा उस प्रकार के अन्य साहित्य में । सगुण-भक्ति से सम्बन्धित कुछ और भी साहित्य है। १. शिव सम्बन्धी-पार्वती मंगल, शिव-स्तुति, महादेवजी को
ब्याहुलौ। २. गंगा सम्बन्धी-गंगाभूतलग्रागमन, गंगा की प्रार्थना आदि। ३. देवी सम्बन्धी-दुर्गा सप्तशती का अनुवाद, कालिकाष्टक,
फुटकर प्रार्थना के छंद । ४. गोवर्द्धन सम्बन्धी-गिरवर विलास, गोवर्द्धन महात्म्य
आदि । ५. भक्तों सम्बन्धी-ध्र व-विनोद। . ६. भागवत प्रसंग-दशम स्कंध की कथाएँ जो भागवत से
अनूदित हैं ।
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