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रीति-काव्य
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श्रीमन ब्रजेंद्र महाराज बलवंतसिंघ जिनकी कृपा की लहि रसविस्तार है । पंकज वरन सम राधिका चरन ध्याय । कीनौ ब्रजचंद ग्रन्थ तिलकसिंगार है |
श्रध्याय २
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यह पुस्तक बलवंतसिंहजी के लिए बनाई है ।' पुस्तक निर्माण का समय संवत् १८६५ है । यह कालिदास के शृंगारतिलक का 'भाषा रूप' है, जैसा कवि का कहना है
' रच्यो सुमति अनुसार यह, भाषातिलक सिंगार । ज्यौ कहूं भूल्यों होय तो लीजौ सुकवि सुधारि ।'
पुस्तक के अंत में लिखा है
' इति श्री मन्नमहाराज व्रजेंद्र बलवंतसिंह हेतवे ब्रजचंद विरचिते शृंगारतिलक सम्पूर्णम् । संवत् १८६५ में मिती माघ कृष्णा १३ रविवासरे लिप्य कृतं मित्र रामबस भरतपुर मध्ये राज्ये श्री बलवंतसिंहजी' । यह तिथि पुस्तक को लिपिबद्ध करने की है । उनकी कविता का एक उदाहरण
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नील अरिविंदन के नैन जुग रोषं चारु कोकनद ही को भले प्रांनन सु लीनो है । कुंद की कलीन रचि दंत की बनाइ पंक्त पल्लव नवीनन को अधर नवीनो है । भनि ब्रजचंद त्योही चिबुक गुलाब कीती चंपक के दलन कौ अंग अंग कोनी है । सुंदर सु तैरौ चित विधिना निलजी ने ही, पाहन तं कठिन सु कैसे रचि दोनो है ॥
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४. व्रजेंद्र विनोद - मोतीराम द्वारा लिखित । यह पुस्तक प्रधानतः नायिका
१ साजि भरथपुर नगर में, श्री बलवंत उदार । तिनके हित ब्रजचंद ने कीनौ ग्रंथ तयार ॥
२ ठारे से पच्यांन में, आश्विन मास प्रवीन । शुक्ल पक्ष दसमी विजय, भयौ सु ग्रंथ नवीन ॥
3 यह पुस्तक भी बलवंतसिंह जी के लिए लिखी गई -
' इति श्री मन्नमहाराज ब्रजेंद्र बलवंतसिहजी बहादुरस्य विनोदार्थे मोतीराम सुकवि विरचिते व्रजेंद्र विनोदे नायकभेदनिरूपने षष्टोल्लासः ।'
यद्यपि कवि ने एक स्थान पर इसे 'कृष्णार्पण' भी किया है
'बरन्यौ जुगल किसोर हित, वृंदा विपिन बिहार । भिदान दीजं अभय, अपनी भक्ति अपार ॥'
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