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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
श्री जी श्री।
देव, नवोन' प्रादि के अतिरिक्त और भी कवि आते रहे होंगे। __ इस प्रकार मत्स्य प्रदेश में रीति-काव्य-धारा पुष्कल रूप में प्रवाहित होती रही और अन्य स्थानों के अनेक कवि और विद्वान भी इसमें अपने स्रोत मिलाते रहे।
५ इनकी एक अन्य पुस्तक 'प्रबोध रस सुधासार', संवत् १८८१ की लिखी हुई, और
मिली है।
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