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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
यह पुस्तक प्रचलित राग-रागनियों में लिखी गई है । राग ईमन देखिए
होरी होरी कहा कहती डोलें ।
अगवारं पिछवार गिरा मनमांनी तू गारी बोलै ॥
छीन लऊं तेरी डफै मुरलिया इतनी ठसक मगरूरीखोले ।
ब्रजदूलह जू छैल अनोखो हंसि हंसि के तू बतियां छोलै ॥
( कितनी तेज़ है यह नायिका ! )
एक दूसरी नायिका देखिए जो कृष्ण के कारण सहमी हुई है - ' लरकैया' जो है—
पिचकारी न मारौं कन्हैया मेरी चुनरि भीजै दईया | अब ही मोल लई मनमोहन सास लड़े घर सैया || नगर चवाब करें सब नारी तेरे परों में पंया । ब्रजदूलह होरी खेल न जानी कहा करो लरकैया ॥
दो विभिन्न नायिकाओं का चित्र हमारे सामने है । इनमें से एक उद्धत, जोरदार और हाथापाई करने वाली है, और दूसरी लड़कनी, सहमी तथा होरी खेलने की रीति से अनभिज्ञ है ।
इस पुस्तक में अन्य कवियों के छंद भी मिलते हैं । 'धीरज' का एक छंद देखिए -
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गोकुल गुजरेटी रूप लपेटी जोवन गर्भ-गरूर भरी । ससिबदनी मृगनेंनी सुंदर हार हमेल जराब जरी ॥ रंग रंगीली अरु चटकीली मुलकत अंगिया प्रति सुथरी । अलक लड़ी अलबेली धीरज चाल चलत गज मत्तवरी ॥
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इन महाशय ने भी राम और लक्ष्मण को होली के छैलों में दाखिल कर
दिया है ।
होरी पेलें जी राम जनकपुर मैं ।
राम लखन भरतानुज च्यारों अद्भुत वीर लसत तन मैं ।
भरि भरि रंग अवधि को राजा फेंकत है चलि चलि मुख मैं ||
और यह है उर्मिला, मांडवी और श्रुतिकीर्ति की होली ।
होरी पेलत श्री राम अनुज नारी ।
उर्मिला मांडवी श्रुतिकीर्ति सब ठाड़ी हैं जूथ जूथ न्यारी । बहु भूषण शुभ चीर लसें उर नक बेसरि मुख छवि भारी ।। महल महल मिलि नारी सुलक्षण बोलत हैं शुभ वारि वारी । फिरिफिरि नारि धारि तन मारे हरषत हैं सीता प्यारी ॥
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