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निधि और रसानन्द तो विशिष्ट काव्य-शास्त्री कहे जाने के अधिकारी हैं और हिन्दी के उच्च रीतिकारों की श्रेणी में इन्हें रखा जा सकता है ।
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श्रध्याय २ रीति काव्य
इस प्रदेश में अनेक कवि आते जाते रहते थे क्योंकि उन्हें मत्स्य के राजाओं के दरबार में आश्रय और सम्मान मिलता था । कुछ कवि तो यहीं बस गये और कुछ समय-समय पर आते रहे । भरतपुर के प्रसिद्ध कवि कलानिधि, जो बूंदी के बुधसिंह और उसके पश्चात् भोगीलाल के पास रह चुके थे भरतपुर में आकर बस गए। इसी प्रकार बख्तावर सिंह के दरबार में रहने वाले भोगीलाल भी राजा का यश सुन कर ही उनके पास आए थे । समय-समय पर आने वाले कवियों में देव, कृष्णदास और नवीन के नाम प्रमुख हैं । यहां के काव्य पर भी इन प्रसिद्ध कवियों का प्रभाव अवश्य पड़ा होगा । कहा जाता है कि हिन्दी के सुप्रसिद्ध महाकवि देव भरतपुर तथा अलवर राज्यों में पधारे थे । ' इनके सम्बन्ध में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं | नवीन भी इधर आये । इनका
हनिदान एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है और मत्स्य में बहुत प्रचलित था क्योंकि इसकी कई प्रतियां हमें मिलीं, जिनमें से एक को लिपिबद्ध करने वाले स्वयं रसानन्द थे । इस पुस्तक के अन्त में लिखा है
आसाढ़ वद २ संवत् १८६६ । हस्ताक्षर रस श्रानंद के भरतपुर मध्य । श्री राधायै नमः ।
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भरतपुर के प्रसिद्ध साहित्यसेवी स्व० गोकुलचन्द्र दीक्षित के पास देव के अनेक प्रामाणिक ग्रन्थ थे | उन्हीं ने भरतपुर का इतिहास 'ब्रजेन्द्र वंशभास्कर' लिखा तथा देव के ग्रन्थ 'शृंगारविलासिनी' का संपादन किया । बहुत दिनों तक यह कहा जाता था कि देव का 'सुजान विनोद' महाराजा सुजानसिंह के लिये लिखा गया था क्योंकि सुजानसिंहजी के समय में ही देव कवि डीग पधारे थे । राजा ने उनसे कविता सुनाने को भी कहा था और साथ ही राजा की इच्छा थी कि वे देवजी का कुछ प्रार्थिक सत्कार भी करें । न जाने क्यों देव ने कुछ नहीं सुनाया और कहा 'सरस्वती आज्ञा नहीं देती है ।' जब बार-बार कहा गया तो देव ने कुछ वैराग्य संबंधी छंद सुनाये जो 'देवशतक' में सम्मिलित बताये जाते हैं । जब आपस में नोंक-झोंक बहुत बढ़ गई तो देव ने निम्न दोहा कहा था
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पीताम्बर फाट्यो भलो, साजो भलो न टाट । राजा येतो का भयौ, रह्यौ
समय मेल नहीं खाता ।
जाट को जाट || कहा जाता है कि देव अलवर भी पधारे थे किन्तु इस प्रसंग में देव का काल १८ वीं शताब्दी का पूर्व काल है और अलवर के प्रथम राजा प्रतापसिंह का समय सं. १८१३ से १=४८ वि० है । हो सकता है जब ये लोग अलवर से दूर कुसुमरा में रहते थे तब देवजी वहां पधारे हों । इनके वंशज भोगीलाल तो अलवर के राज्यकवि
थेही ।
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