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अध्याय २ -- रीति - काव्य
खोज में मैं उसे पाने में असमर्थ रहा । पुस्तक के कुछ उदाहरण
प्रथम कवित लछिछन कहौं, बहुरि प्रयोजन मित्र ।
तात पाछै बरनि हौ, कारन भेद विचित्र । अथ काव्य लक्षिनं
सगुन पदारथ दोष विहीन, ईषद भूषन कवि क्रम लीन ।
पुनि पिंगल मतते अबिरुद्ध, सौ कविता पहिचानव शुद्ध ।। काव्य को प्रयोजन--
जस विनोद वित राजश्री, अति मंगल की दांनि । सो कविता पहिचानिये, चतुराई की खानि ।
(इनैं ग्रादि दै और हू जानिये)' काव्य कौ कारण
शब्दार्थ जिनते विधि नीकी, कवित होति भावती जीकी । ताको प्रघट गूढ जु अरथ्थ, जानौ चित्त कारन समरथ्थ ।।
(सो वह चित्त को कारण त्रिविध होता है) १ इस पुस्तक के एक दोहे से ऐसा विदित होता है कि इन्होंने नायक-नायिका भेद पर भी कोई पुस्तक लिखी थी जिसका नाम 'ब्रजेंद्रप्रकास' था । रे
हमारे अनुसंधान में जो महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित पुस्तकें रोतिकाल से संबंधित मिलीं, उनका साधारण विवरण ऊपर दिया जा चुका है। इन पुस्तकों में कुछ तो पूर्ण हैं और कुछ अपूर्ण, किन्तु रीति संबंधी सभी प्रसंगों का निरूपण सम्यक् रूप में मिलता है । इन पुस्तकों के प्रधान विषय ये हैं
१. रस, २. ध्वनि, तथा अन्य काव्य-सम्प्रदायों संबंधी प्रसंग. ३. अलंकार, ४. छंद, ५. नायक-नायिका भेद, ६. सिखनख, ७. राग-रागनियों का वर्णन ८. षोडस शृंगार, प्रादि ।
बहुत सी हस्तलिखित पुस्तकों की कई-कई प्रतियां उपलब्ध हुईं जैसे 'रस पीयूषनिधि', 'सिखनख'। इनमें से 'सिखनख' की तो टीका मात्र पर हो हमारा अधिकार है क्योंकि टीका ही मत्स्य के मनीराम द्विज द्वारा की गई है। 'सिखनख' इसके मूल लेखक बलभद्र मिश्र तो ओरछा के रहने वाले थे । दूसरे ग्रन्थ की जो प्रतियां प्राप्त हुई उनमें से कई तो अपूर्ण हैं किन्तु जो ३-४ प्रतियां पूर्ण
१ यत्र तत्र गद्य-टिप्पणियां भी दी हुई हैं, किन्तु बहुत सूक्ष्म । २ 'लछ्छिन तिय अरु पुरुष के' हाब भाव सविलास ।
प्रथम वजेंद्र प्रकास में, ते सब किये प्रकास ॥'
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