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श्रध्याय २ रीति-काव्य
६. सिखनख - रसानन्द' द्वारा लिखित ।
ग्रन्थ का प्रारम्भ इस प्रकार होता है"श्री राधा कृष्णो जयति
दोहा
रस प्रानद मय रूप की, नॅनन साधि-समाधि । जग बाधा निस्तार हित, राधा चरन अराधि ॥
छप्प
आदि शक्ति सब विश्व जननि इच्छ्या वपु धारत । महिमां गम पुकारि निगम कीरति विस्तारत || गिरा उमा रति रमा लिये रुष सन्मुष विनवत । सीस धारि रज ग्रज गिरीस पद पंकज विनवत ॥ तिहि सुधा प्रेम छकि विवस हुँ रस श्रानद जस गाईये ! रस बोध करनि बाधा - हरनि राधासरन मनाईये ||
अथ शृंगार रसाधार सिष नष निरूप्यते
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नष सिष लौं पिय मन रमी, परिपूरन शृंगार । सिष नष राधा कुवरि की, वरनौं मति अनुसार ॥
१ रसानन्द जाट थे । 'रस-प्रानन्द' अथवा 'रसानन्द' इनका उपनाम प्रतीत होता है । घनानंद, और आनंद घन की ग्रानन्द स्वरूप माला में ये तीसरी कड़ी हैं। इनकी कविता उच्च कोटि की है। मिश्रबन्धु ने इन्हें भट्ट लिखा है परन्तु कवि के निवासस्थान भरतपुर में की गई खोज के श्राधार पर ये 'जाट' सिद्ध हुए हैं । ये अलीगढ़ जिले की इंगलास तहसील के बैसवा गांव से भरतपुर श्राये थे । निम्नलिखित ग्रंथ मुझे मिले हैं
इनके
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१. गंगाभूतल ग्रागमन कथा | २. सिखनख । ३. व्रजेन्द्रविलास । ४. रसानन्दघन | ५. संग्रामरत्नाकर । ६. हितकत्यद्रुम (ब्रिटिश म्यूजिम लंदन प्राप्त हुआ । इस कृति पर मेरा स्वतंत्र लेख 'हितकल्पद्रुम' श्रनुशीलन में देखें 1 )
इनके लिखे और कई ग्रन्थ बताये जाते हैं, जैसे
३. भोजप्रकास, ४. रसानन्दविलास,
१. बारहमासी, २. संग्रामकलाधर, ( भक्ति ग्रंथ ) ५. षोडसशृंगारवर्णन | ऐसे प्रतिभाशाली कवि का हिंदी साहित्य के इतिहास में नाम तक न होना बड़े प्राश्चर्य का विषय है । प्राप्त ग्रन्थों के आधार पर कहा जा सकता है कि रसानन्द एक उच्च कोटि
के कवि, प्राचार्य, भक्त तथा नीतिज्ञ थे ।
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