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अध्याय २-रीति-काव्य
द्वितीय पंक्ति १. मूल- 'मषतूल गुनग्राम सोभित रस स्यांम,
___काम मृग कानन कुहू के कुमार हैं।' २. अर्थ- 'मष तूल स्याम पाट, गुन सो डोरा, ग्राम सौ समूह, सरस सौ अधिक, काम
ही भयौ मग ताकौ कांदन सो वन, कुहू सो मावस्या को भेद ।' ३. अर्थ दृढ़-- यहां भी कोष दिखाया गया है । इसी प्रकार तीसरी और चौथी पंक्तियों की टोका की गई है।
तृतीय कोप की किरनि कि जलद नलि के तंत उपमा अनंत चारु चमर सिंगार हैं ।
चतुर्थ कारे सटकारे भीजे सौंधे सरस वास ,
ऐसे वलिभद्र नवबाला तेरे वार हैं ।। इससे अधिक सुन्दर टीका का उदाहरण और क्या मिल सकता है ? मनीराम की यह टीका हिन्दी साहित्य में किया गया एक उत्तम प्रयास है और इस टीका का मूल्य तब और भी बढ़ जाता है जब हम देखते हैं कि यह टीका सबसे पुरानी है । सम्पूर्ण टीका में एक ही पद्धति का अनुगमन किया गया है, और 'अर्थ' तथा 'अर्थ दृढ़' के द्वारा कवि की विद्वत्ता तथा काव्य-मर्मज्ञता प्रमाणित होती है।
एक अन्य पुस्तक 'विनयप्रकास' हमारी खोज में उपलब्ध हुई। यह पुस्तक नायक-नायिका वर्णन से संबंधित है।' इस पुस्तक के लेखक हैं कविश्रेष्ठ हरिनाथ जो महाराव राजा श्री सवाई विनयसिंहजी के आश्रित थे। इनकी
सिखनख टीका सहित यह, है सिंगार को मूल ।
भैरू सेषावत लिष्यौ, चतुर रहे मन फूल ॥ इस पुस्तक का नाम प्रायः 'नखसिख' लिखा गया है परन्तु इसका नाम 'सिखनख' है, और
पस्तक में वर्णन भी 'सिख' से प्रारम्भ कर 'नख' तक किया गया है १ कवि ने स्वयं लिखा है
रच्यौ ग्रंथ इह प्रीति करि, 'विनै नरेस प्रकास' ।
वरनौ नायक नायका, कवि सुष सदन विलास ॥ २ कवि का नाम (अनुप्रासयुक्त छंद में')
गिरिधर गोविंदनाथ गदाधर गोकुल ग्यानी । गोकुलेस गंभीर गरुर-गामी गुन ध्यानी ।। गोपीबल्लभ ग्वाल बाल गन मन मदसूदन । माघौ मधु-रिपु मकर मुरलिधर कंस-निषूदन ॥
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