________________
मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन कविता के देखने पर विदित होता है कि काव्य-गति, शब्द-चयन, छंद-निर्माण, भावुकता, अलंकार-योजना आदि की दृष्टि से उनकी रचना उत्तम कोटि की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि यह ग्रंथ बहुत बड़ा था और इसमें अनेक प्रकास' थे । इस पहले ही प्रकास में ३८७ छंद हैं और 'हावभाव प्रसंग' के अंतर्गत कविता की छटा दर्शनीय है । इस प्रकास के अंत में कवि ने लिखा है
'इति श्री महाराज श्री श्री श्री... विनयसिंहजी प्रकासे कवि सुष सदन विलासे कवि हरनाथ कृते नाइकाद हावभाव वर्नन नाम प्रथम प्रकास' ।
इसके पश्चात् 'अथ रसादिक भाव लक्षन । दोहा ।।' और बस यहीं यह सुन्दर हस्तलिखित प्रति समाप्त हो जाती है। इस प्रकार के सुन्दर और विस्तृत शास्त्रीय ग्रन्थों को अधूरी अवस्था में पाकर बड़ा दुःख होता है किन्तु संतोष इसी बात पर किया जाता है कि जो कुछ मिलता है वह तो किसी प्रकार सुरक्षित रहा । इस प्रथम प्रकाश के ही आधार पर कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैंनायिका वर्णन
गुनभरी गरब गुमानभरी मान भरी , सकल सयांन भरी रूप रस रेली है । भाग-भरी सरस सुहाग अनुराग-भरी , प्रेम-भरी परम प्रवीन अलबेली है । जाहि देषि सुर नर मोहत मधुपवृद , कवि 'हरिनाथ' साथ दीपति सहेली है । मैन मन मैली नैन उरझेली जैसी , कंचन की बेली असी नाइका नवेली है ।
करुनाकर करुना अयन, करह कृपा वारिज वदन।
हरिनाथ ध्यान दृढ़ पानि तुग्र, केसी कंदन नद नंदन ।। 3 महाराव राजा श्री विनय सिंहजी का राज्यकाल संवत् १८७१ से १६१४ वि० तक रहा।
अलवर की राजकीय पुस्तकशाला की स्थापना इन्हीं के द्वारा कराई गई, जिसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग इस निबंध में किया गया है। पुस्तकशाला नाम की संस्था तो समाप्त हो गई किन्तु उसमें संगृहीत हस्तलिखित प्रतियां कुछ अलवर के म्यूजियम में हैं और कुछ वर्तमान अलवर नरेश के निजी पुस्तकालय में। इनके द्वारा ही 'विनय विलास' नाम का महल बनवाया गया जिसमें आज कल 'राजऋषि कॉलेज' लगता है। ये बड़े विद्याव्यसनी तथा संग्रही थे, और अलबर में इनकी कला-प्रियता के बहुत से नमूने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org