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मत्स्य देश की हिन्दी साहित्य को देन
एक उत्प्रेक्षा भो : प्रच्छन्न संभोग शृंगार संबंधित
चंचल चितौंही चीर अंचल मैं राज कुच ऊपर अपार हार छवि छहरात है। मानौ चारु भारती के धार है अन्हात संभु
तिनही के सीस सुरसरी सरसाति है ।। पिया को विहित भाव
कपट की बानी जिय जानी पहिचानी जानी जानति हमारौ मन मेलि भरमायौ है।
xxx पीरी परि आई झांई कपोलनि कहै दैति
कहि अज कैसे काम की रति दुराइ है। इस पुस्तक में
१. प्रचलित छंद-कवित्त, सवैया, दोहा अादि हैं । २. ग्रंथ रचना में उस समय की प्रचलित रीतिकालीन परिपाटी का ही
अनुगमन किया गया है। ३. शृंगार रस के अनेक नग्न और उत्तेजक वर्णन हैं जो शृंगार काल की
उस कमी को लिए हुए हैं जिनके कारण काव्य का ह्रास हुआ। ४. अनेक स्थानों में उस समय के प्रसिद्ध कवियों द्वारा ग्रहीत प्रणाली का
प्रयोग किया गया। अलंकार कलानिधि- कवि की दूसरी पुस्तक है। दुर्भाग्य से यह पुस्तक अपूर्ण प्राप्त हुई है ।' पुस्तक इस प्रकार आरंभ होती है
'गाव रसन के भेद कहते हैं'-किन्तु अाश्चर्य इस बात का है कि जहां पांचवीं कला के साथ पुस्तक मिली वहां पत्र संख्या १ मिली है जिसका अभिप्राय यह है कि इसी नाम की किसी बृहद्तर पुस्तक से कुछ अधिक अावश्यक और उपयोगी प्रकरणों की प्रतिलिपि की गई है। किन्तु पांचों कलानों का एक साथ मिलना एक और भी कठिनाई है।
१ जिस जिल्द में अलंकार कलानिधि की हस्तलिखित पुस्तक मिली उसके पहले नाममंजरी नाम की पुस्तक का कुछ अंश है जो अमरकोष के सदृश पर्यायवाची शब्दों का संग्रह है। उदाहरण अन्यत्र उपलब्ध हैं । अलंकार कलानिधि की प्रथम चार 'कला' नहीं मिलीं। पुस्तक पांचवीं कला से शुरू होती है और नवीं कला तक चलती है। दसवीं कला प्रारम्भ होने के साथ ही पुस्तक का अगला भाग छूट गया है और इस कला के केवल नाम मात्र का संकेत मिलता है।
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