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अध्याय २ - रीति-काव्य अब पिंगल के सविस्तार निरूपण की ओर अग्रसर होते हैं
पिंगल की मत निरिष के नाथ' कहै पहिचान । तदनन्तर वे 'सप्त मात्रा प्रस्तार स्वरूप प्रसंग' को लेते हैं
प्रथमहि गुरु तर लघु लिङ्ग, ग्रागै वरन सरूप ।
जे अबसेष सु गुरु लिषै, यह प्रस्तार अनूप ।। इसके पश्चात् 'पंच वरन प्रस्ताव स्वरूप का वर्णन है, फिर सप्त मात्रा प्रस्तार के २१ योग बताये हैं। पंचमात्रा के ३२ योग बताये हैं। पंच मात्रा के . ३२ योग बताये गये हैं। 'गण' की व्याख्या वर्ग-प्रणाली से की गई है जिससे सारी बातें एक साथ स्पष्ट हो जाती हैं। फिर तीन मेरु की बात बताई है । छन्दों का वर्णन उच्च श्रेणी का है किन्तु इममें कुछ उलझावट सी या जाती हैं। छन्दों के प्रकरण में कवि की प्रतिभा दिखाई पड़ती है और छन्दों संबंधी वर्णन काफी अच्छा है। आवश्यकतानुसार छन्दों का स्पष्टीकरण करने में अनेक प्रणालियों का प्रयोग किया है। मात्रा मर्कटी के स्वरूप को भी वर्गाकार रूप में समझाया गया है।
इसी प्रकार काव्य के विभिन्न प्रसंगों को विस्तृत व्याख्या के साथ बताया गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने मम्मट के काव्यप्रकाश पर अधिक ध्यान दिया है और पुस्तक की पिछली तरंगों में ध्वनि-प्रकरण विस्तार के साथ समझाया गया है। रस, नायक-नायिका श्रादि प्रसंगों को भी सुन्दरता के साथ बताया गया है। व्याख्या को अधिक स्पष्ट बनाने के लिए गद्य का प्रयोग भी किया गया । वीभत्स का उदाहरण लीजिए
इतही प्रचंड रघुनंदन उदंड भुज , उतै दसकंठ बढ़ि पायौ रुड डारि के। सोमनाथ कहै रन मंड्यौ फर मंडल में , नाच्यो रुद्र शोणित सों अंगनि पखारि कै ।। मेद गूद चरबी की कीच मची मेदनी में , बीच बीच डोलें भूत भैरों मुंड धारि के। चाइन सौ चंडिका चबात चंड मुंडन को ,
दंत सौ अंतनि चचोरे किलकारि के ॥२ गद्य में व्याख्या
___ 'इहां चंडिका और देषनि वारो आलंबन विभाव, और आतनि को
१ सोमनाथ । २ 'रस ध्वनि' १६वां तरंग-रस पीयूषनिधि ।
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