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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
रसपीयूष निधि तरंग
७. काव्य प्रकाश उल्लास सप्तम्
अष्टम्
२१
नवम्
१०. ,
दशम् . काव्य प्रकाश में छंद-निरूपण तथा नायिका भेद नहीं है किन्तु रसपीयूषनिधि में यह प्रसंग भी शामिल कर लिए गए। पहली कुछ तरंगें और बीच की आठ तरंगें इन प्रसंगों के लिए काम में लाई गई हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ सर्वांगपूर्ण है और काव्य के सभी प्रसंगों का सुन्दर विवेचन एक ही स्थान पर उपलब्ध है । इस ग्रन्थ का प्रकाशन कवि के ही शब्दों में १७६४ वि० है
सत्रह सौं चौरानवां, संवत् जेठ सुपास ।
कृष्ण पक्ष दशमी भृगू भयो ग्रन्थ परकास ।। यह पुस्तक काफी बड़ी है, और इसमें प्रयुक्त कविता का स्तर भो काफी ऊँचा है। कहीं-कहीं कुछ दोष भी दिखाई देते हैं जो अधिकतर लिपि से संबंधित हैं । हो सकता है ये अशुद्धियां लिपिकार के कारण ही आ गई हों। यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य में मत्स्य प्रदेश के इन महाकवि का स्थान कवित्व और प्राचार्यत्व की दृष्टि से बहुत ऊँचा है।
कलानिधि' नाम के एक उत्कृष्ट कवि भी प्रतापसिंहजी के दरबार में थे। सोमनाथ और कलानिधि ने मिल कर सम्पूर्ण रामायण का हिन्दी अनुवाद किया था, ऐसा कहा जाता है। हमें हमारो खोज में कुछ काण्ड मिले जिनके आधार पर अनुवाद वाली बात सत्य प्रतीत होती है। रोतिग्रन्थों के सम्बन्ध में कलानिधि के दो ग्रन्थ प्राप्त हुए
१. शृंगार माधुरी २. अलंकार कलानिधि
१ कवि कलानिधि के संबंध में अनेक बातें सुनने और पढ़ने को मिलीं। 'मिश्रबन्धु विनोद' में तीन कलानिधि दिये गए हैं
१. कृष्ण कलानिधि नं० ६१२ पर सं० १८२. २. कलानिधि नं० ६६२ पर सं० १८०७
३. लाल कलानिधि नं० १०१७ पर सं० १९०७ किन्तु इनकी पुस्तकों का अध्ययन करने पर मालूम होता है कि ये तीनों एक ही कलानिधि
१. तीनों का समय १८०७से १८२० का माना गया है।
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