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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
ये दोनों ग्रन्थ भरतपुर आते समय कवि के पास थे, और इनका प्रचार तथा सम्मान यथेष्ट मात्रा में हुा । भरतपुर राज्य के प्राश्रित होने के नाते ही हम कलानिधि के इन ग्रन्थों को मत्स्य के अतंर्गत लेते हैं। इसमें संदेह नहीं कि भरतपुर के महाराज कुमार प्रतापसिंहजो ने कवि के काव्यत्व को विकसित कराने का सुअवसर प्रदान किया। उस जमाने में कविगण प्राश्रयदाता की खोज में इधर-उधर जाया करते थे। महाकवि देव को तो कोई अच्छा प्राश्रयदाता ही नहीं मिल पाया । संभव है कि कलानिधि भी कई स्थानों पर गए होंगे किन्तु यह बात निर्विवाद सी मालूम होती है कि इनका अधिक समय वैर में ही व्यतीत हुआ, और वहीं रह कर इन्होंने अपने जीवन का सब से बड़ा काम-बाल, युद्ध और उत्तर काण्डों का हिन्दी पद्यानुवाद किया। प्रस्तुत दोनों पुस्तकें- शृंगारमाधुरो और अलंकारकलानिधि, भरतपुर में नहीं लिखी गईं। पहलो पुस्तक बूंदी के राजा बुद्धसिंहजो के लिए लिखी गई थी, और दूसरी महाराज भोगीलाल के लिए ।'
१ कलानिधि के और भी कई ग्रन्थ खोज में मिले
१. उपनिषद्सार--माण्डूक्य, केन आदि उपनिषदों का गद्य अनुवाद । २. दुर्गा माहात्म्य-तेरह तरंगों में दुर्गासप्तशति का अनुवाद ।
३. रामगीतम्-गीतगोविंद प्रणाली पर लिखा ग्रंथ । संस्कृत
१. प्रशस्ति मुक्तावली । २. सरस रसास्वादः । ३. वृत्तमुक्तावली। ४. पद्यमुक्तावली-प्रकाशित रा... वि. प्र.। ५. ईश्वरविलास-प्रकाशित रा.प्रा. वि. प्र.।
रामगीतम् का उद्धरण
भव भय दुःख निवारण सुखकारण ए। भवति करुणभवभाजि ! रघुवर राम रमे ।। जन कसुता परिरम्भरण घृत सम्भ्रम ए ।
निज-जन-सुरतरुरख ! रघुवर राम रमे ॥ ये पूस्तके तथा वाल्मीकि रामायण के तीन काण्डों का हिन्दी अनुवाद इस बात का प्रबल प्रमाण है कि कलानिधि संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे।
इनकी पुस्तकों से मालूम होता है कि ये महाशय बूंदी के महाराजा बुद्धसिंहजी के यहां थे। ये भोगीलाल के पास भी गये और अंत में भरतपूर राज्य में पधारे जहां वैर के
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