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अध्याय २ - रीति-काव्य
मद जल श्रवत कपोल गुंजरति चंचरीक गन ।
चंचल श्रवन अनूप थोद' थरकत मोहति मनि ।। सुर नर मुनि बरन त जोरि करि गुन अनंत इमि ध्यायचित ।
ससिनाथ २ नंद आनंद करि जय जय श्री गणनाथ नित ।। कवि ने भरतपुर के राजकुल का वर्णन इतिहास की दृष्टि से यथावत् किया है । इनके अनुसार भी बदनसिंहजी के दो पुत्र बहुत गौरवशाली थे। सूरजमल राज-कार्य में अधिक भाग लेते थे
राजकाज करता बड़े सूरजमल्ल उदार। प्रतापसिंहजी सूरजमल के छोटे भाई थे और कवियों के लिए कल्पवृक्ष के समान थे। इनके दरबार में अनेक कवि रहते थे। सोमनाथ भी इन्हों के दरबार में थे। अपने आश्रयदाता का वर्णन करते हुए इनका कहना है
बाहुवली तिनके अनुज, श्री परताप सुजान । धरम धुरंधर जगत में, मोज भोज परमान ।। समझ कुमर परताप को, निपुन राज के काज ।
दियौ वैरि गढ़ि हरष के, बदन सिंह महाराज ॥ अपने आश्रयदाता की प्रशंसा करने में सोमनाथ ने उस समय की प्रचलित प्रणाली का अनुगमन किया है जिसके अनुसार शाश्चयदाता में सम्पूर्ण गुणों की कल्पना की जाती थी और राजधानो को इन्द्रपुरी के समान समझा जाता था। प्रतापसिंहजी के दरबार में बहुत से गुणी लोग रहते थे और वैर के राजा की उदारता का उपभोग करते थे। प्रतापसिंह वीर भी थे। उस समय के लिए
१ स्थानीय प्रयोग, अर्थ है - 'मोटा पेट'। २ कवि के अनेक नाम मिलते हैं-सोमनाथ, सोम, ससि, ससिनाथ, नाथ, शशिनाथ । 3 वैर। ४ वैर का वर्णन
सुंदर सफल चहुं ओर दरसत बाग अरविंद मंडित सरवर हमेसके। बसै चारयों वरन जितया जंग जालम और राचे प्रेम रंग साचे वचन सुवेसके । जगमग गढ महा महल विलंद महाराज श्री प्रताप मानो उदय दिनेसके ।
पाठहू पहर जहां मोद नित नेरै होत वैर पर वारौं कोटि सहर धनेस के ।। ५ सिद्ध मसनंद पं विराज परतापसिंह भूषनि मयूषनि हवै झलकै हुलास है। पाछे चौंरवारे पाछे अंवसनिवारे प्रागै सोहत सुगन्ध भीनै सुन्दर षवास हैं ।। चंह ओर सरसें निरेश कहि सोमनाथ हिये में सुहृदसुष देव को तलास है ।
आस पास मंडित अषंड नीति वारे जहां पंडित प्रकास वाकवानी को विलास है। ६ प्रताप की तेग देखिए
शंकर के अंग सी है गंग की तरंग सी , विरंच के विहंगम सी चंद तै उदार सी।
(टिप्पणी का शेष अंश आगे के पृष्ठ में है)
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