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अध्याय २
रीति-काव्य
तब ग्रंथ को जन्म भव, करै कवित्त स तीनि ।
दये ग्रंथ के आदि ही, जानहु परम प्रवीन ।। इन कविराज का वर्णन प्रमुख रूप से रागों का है। छहों रागों के नाम बताते हुए इनका कहना है
प्रथम राग १ भैरव कहौं, २ माल कोश 3 हिंडोल ।
४ दीपक पुनि ५ श्री राग शुभ, ६ मेघराग शुभ बोल ।। इन एक-एक राग के ८ पुत्र और ५ स्त्रियां हैं और उन का गायन समय के अनुसार होता है -
एक एक के पाठ सुत, पांच भारजा मान ।
अपने अपने रितु समय, गावत चतुर सुजान ।। भैरव राग की पांच स्त्रियों के नाम सुनिए---
१ बंगाली अरु २ भैरवी, 3 वेला ४ वली प्रमान ।
५ पुन्य स्नेहा भारजा, भैरव राग सुजान ।। अब पाठों पुत्र भी देखिये
१ बंगाली शुभ राग सु २ पंचम जालिये । 3 मधुर राग ४ देशाष ५ सुहर्ष बखानिये । ६ ललित राग शुभ जान " बिलावल मानि जिय ।
पै हां ८ माधव राग सकल सुत जोनिलय । राग बिलावल का स्वरूप भी देख लीजिये--
तन में किसोरी भोरी गोरी गोरी राज वर , चन्द्रकान्त चन्द्रिका उजारी जाको घर में। पीय सों संकेत पाय दयावंत पूरी भरी , भूषन अनन्त मनि भूषन से घर में । नीलज कमल कान्ति भांति भांति देह दिपै , बार बार मुसकात शशि रात भर में । ऐंड सों ऐडात कछु अंचल उड़ात उर ,
नागरी 'विलावल' सरोज लिये कर में ।। गौने चलि आई नई दुलही मुहाग भरी, भावभरी बेलि सुबरन की सुभोरी सी।
कहै शिवराम रति मंदिर लों लाई सखी,
बातन लगाय गुन गनन की गौरी सी ॥ देख भजति प्यारे गहि लीनी दौरि चंचला सी , ता समै तिहारी भई प्यारी गति औरी सी।
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